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________________ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे - [पेदले ॥ ६१०४. एक्किस्से पवेसगस्स ताप उच्चदे । तं जहा--एको अण्णदरवेद-संजलणाणमुदएण उवसमसेढिमारूढो वेदपढमद्विदीए प्रावलियपविट्ठाए एयसमयमेकिस्से पक्सगो जादो। विदियसमए कालं कारण देवेसुववण्णो । लद्धो एकिस्से पवेसगस्स जहण्णकालो एयसमयमेवो । अधवा ओदरमाणो उत्रसंतकसायो सुहमसांपरायो होदि ति एगसमयमे किस्से पवेसगो जादो । विदियसमए कालं कादूण देवेसुप्पण्णो, लद्धो । एगसमओ। १०५. संपहि दोपहं पवेसग० उच्च दे । तं कधं ? उवसमसेढीए अणिपट्टिकरणपढमसमए दोण्हं पवेसगो होऊण विदियसमए कालं करिय देवेसुप्पएणस्स लद्धो एयसमयमेवो दोण्हं पवेस० जहएणकालो। अधवा ओदरमाणगो अणियट्टिवेदमोकडिऊरणेगसमयं दोएह पवेसगो जादो, विदियसमए कालं काढूण देवेसुक्यण्णो, तस्स लद्धो एगसमो। मार्गदर्शक : श्ववार्यसपहियतमहापर्वसमै उपद-ओदरमाणगो उवसामगो अपुवकरण भावेणेगसमयं चउण्हं पवेसगो होदूण से काले कालगदो देवो जादो, सत्थाणे चेव वा भय-दुर्गछाणमुदीरगो जादो, लद्धो चउण्डं पवेसगस्स जहण्णकालो एयसमयमेत्तो । अथवा खीणोत्रसंनदंसणमोहणीयस्स संजदस्स पढमसमए भय-दुगंछाहि विणा चउण्ड पवेसगत्तं दिटुं । अणंतररामए च भय-दुगुंछासु पविठ्ठासु लद्धो विवक्खियपदस्स एय $ १०४. सर्व प्रथम एक प्रकृति के प्रवेशकका जघन्य काल कहते हैं। यथा--कोई एक जीव अन्यतर वेद और अन्यतर संज्वलनके उदयसे उपशमणि पर चढ़ा । अनन्तर वेदको प्रथम स्थितिके उदयाचलिमें प्रविष्ट होनेपर एक समय तक एक प्रकृतिका प्रवेशक हो गया और दूसरे समयमें मरकर देवोंमें उत्पन्न हुआ । उसके एक प्रकृतिके प्रवेशकका जघन्य काल एक समय प्राप्त हुआ। अथवा उपशान्तकषाय जीव उतरने हुए सूक्ष्मसाम्यराय होकर एक समय तक एक प्रकृतिका प्रवेशक हुआ और दूसरे समयमें मर कर देवों में उत्पन्न हुआ। उसके एक प्रकृति के प्रवेशकका एक समय काज़ भाम हो गया। ६५०५. अब दो प्रकृतियों के प्रवेशकका काल कहते हैं। वह कैसे ? उपशमश्रेणिमें अनिवृत्तिकरणके प्रथम समयमें दो प्रकृतियोंका प्रवेशक होकर और दूसरे समयमें मर कर देवोंमें उत्पन्न हुए जीवके रो प्रकृतियोंके प्रवेशकका जघन्य काल एक समय प्राप्त हुआ। अथवा उपशमणिसे उतरनेवाला जीव अनिवृत्तिकरणमें वेदका अपकर्पण कर एक समय तक दो प्रकृतियोंका प्रवेशक हुआ और दूसरे समयरें मर कर देवोंमें उत्पन्न हुआ। उसके दो प्रकृतियों के प्रवेशकका जघन्य काल एक समय प्राप्त हुआ। ६१०६. अब चार प्रकृतियोंके प्रवेशकका जघन्य काल कहते हैं-उपशमणिसे उतरनेवाला उपशामक जीव अपूर्वकरणभावसे एक समय तक चार प्रकृतियोंका प्रवेशक होकर तद्नन्तर समयमें मर कर देव हो गया । अथवा स्वस्थानमें ही भय और जुगुप्साका उदीरक हो गया। उसके चार प्रकृतियोंके प्रवेशकका जघन्य काल एक समयमात्र प्राप्त हुआ। अथवा जिसने दर्शनमोहनीयका क्षय या उपशम किया है ऐसे संयत जीवके प्रथम समयमै भय और जुगुप्साके विना चार प्रकृतियों का प्रवेशकपना दिखलाई दिया और तदनन्तर समयमें भय और
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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