SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 70
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ : मा० ६२ ] उत्तरपयडिउदीरणाए अयोगारपवरणा ५७ फरस ० १ अगद० सम्माइ डिस्स । एवं मणुसतिए । देसेण गोरइय० १०, म, ७, ६ मोघं । एवं सव्वरइय० देवा भवणादि जाव णवगेव चि । तिरिक्खपंचिदियतिरिक्खतिए १०, ९, ६, ७, ६, ५ ओघं । पंचि०तिरिक्खापज०मप० १०, ९, ८ उदीर० कस्स १ श्रएणदरस्स । यहिसादि सव्वट्टा ति ९, ८, ७, ६ उदीर० कस्स ? अण्णद० । एवं जाव० । * एदासु दोसु गाहासु विहासिदासु सामित्तं समत्तं भवदि । ६१०१. सुगमं । * एयजीवेण काली । १०२. सुगममेद महियारसंभालणसुतं । * एकिस्से दोहं चदुरा पंचराहं छुहं सत्तपहं अहं णवरहं दस पहुं पवेसगो केवचिरं कालादो होदि १ ११०३. सुगममेदेसि द्वाणमुदीरगस्स जहररमुक स्सका लगिद्देस | वेक्खं पुच्द्रावकं । मार्गदर्शक :- आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज * जहणणेण एयसमो । है। छह, पांच, चार, दो और एक प्रकृतिक उदीरणास्थान किसके होता है ? श्रन्यतर सम्यग्दृष्टि के होता है। इसी प्रकार मनुष्यत्रिमें जानना चाहिए। आदेशसे नारकियोंमें १०,९, ८, ७ और ६ प्रकृतिक स्थानोंका भंग ओधके समान है। इसी प्रकार सब नारकी, सामान्य देव, और भवन वासियोंसे लेकर नौ मैत्रेयक तकके देवोंमें जानना चाहिए। सामान्य तिर्यक और पचेन्द्रिय सिवत्रिक में १०, ६, ८, ७, ६ और १ प्रकृतिक स्थानोंका भंग ओके समान है । पश्चेन्द्रिय विर्य अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्तकों में १०६ और प्रकृतिक स्थान किसके होता है ? अन्यतरके होता है। अनुदिशसे लेकर सवार्थ सिद्धि तक देवों में ९, ८, ५ और ६ प्रकृतिक arity स्थान किसके होता है ? अन्यतरके होता है। इस प्रकार अनाहारकमार्गणा तक जानना चाहिए । * इन दो गाथाओं का व्याख्यान करने पर स्वामित्व समाप्त होता है । ६१०१. यह सूत्र सुगम है । * एक जीवकी अपेक्षा काल । $ १०२. अधिकारकी सम्हाल करनेवाला यह सूत्र सुगम है । * एक, दो, चार, पाँच, वह, सात, आठ, नौ और दस प्रकृतियोंके प्रदेशकका कितना काल है ? $ १०३. इन स्थानोंके उदीरक जीवके जघन्य और उत्कृष्ट कालके निर्देशकी अपेक्षा करनेवाला यह पृच्छावाक्य सुगम है । * जघन्य काल एक समय है ।
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy