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________________ Va [वेदगो जयधवलासहिदे कसायपाहुडे खालिई पयेड़ा पर्वसस्सिएकारस चउवोस भंगा। ८८. तं जहा-संजदासंजदस्स वेदगसम्मत्त-पच्चखाण-संजलण-वेद-दोजुगलभय-दुगुंछाहि पढमो चउवीसभंगुष्पादो १ । उवसंत-वीणदसणमोहणीयस्स असंजदसम्माइटिस्स अपञ्चवखाणकसाएष सह ताओ चेव सम्मत्त विरहिदाओ घेत्तण बिदियो २। तस्सेव वेदयसम्माइद्विस्स दुगुडाए विणा भएण सह तदियो ३ । मएण विणा दुगुंछाए सह चउत्थो ४ । सम्मामिच्छाइटिम्मि दुगुंडाए विणा सम्मामि०भएहिं सह पंचमो ५। तस्सेव भएण विणा दुगुकाए सह छहो ६ । सासणसम्माइद्विस्स दुगुछाए विणा भयमुदीरेमाणस्स अणंताणुबंधिपवेसेण सत्तमो ७ । तस्सेव भएण विणा दुगुंछ वेदेमाणस्स अट्ठमो = | मिच्छाइद्विस्स संजुत्तपढमावलियाए भएण सह मिच्छत्तं वेदेमाणस्स णवमो ९। भएण विणा दुगुकाए सह मिच्छत्तमुदीरेमारणस्स दसमो १० । भय-दुगुकाहि विणा अणंताणुबंधिणा सह मिच्छत्तं वेदेमाणस्स एक्कारसमो ११ । एवमट्ठएहं पवेसगस्स एकारसभेदेहिं चवीस भंगा लभंति । एत्थ सवभंगसमासो चउसटि-विसदमेतो २६४ । वराह पयडीणं पवेसगस्स छ चवीस भंगा। * आठ प्रकृतियों के प्रवेशक जीवके ग्यारह चौबीस भंग होते हैं। $८८. यथा-संयतासंयत जीवके बेदकसम्यक्त्व, प्रत्याख्यानावरण कषाय, संज्वलन .. कपाय, वेद, दो युगल, भय और जुगुप्साके द्वारा प्रथम चौबीस भंगोंका प्रकार उत्पन्न होता है । जिसने दर्शनमोहनीयका क्षय और उपशम किया है ऐसे असंयतसम्यग्दृष्टि जीवके अप्रत्याख्यानावरण कषायके साध सम्यक्त्वप्रकृतिके बिना उन्हीं पूर्वोक्त प्रकृतियोंको प्रहरण करके दूसरा चौबीस भंगोंका प्रकार होता है । वेदकसम्यग्दृष्टि उसी जीक्के जुगुप्साके विना भयके साथ तीसरा चौबीस भंगोंका प्रकार होता है ३। भयके विना जुगुप्साके साथ चौथा चौबीस भंगोंका प्रकार होता है ४ । सभ्यग्मिध्यादृष्टि जीवके जुगुप्साके विना सम्यग्मिथ्यात्व और भयके साथ पाँचवा चौबीस भंगोंका प्रकार होता है ५। उसीके भयके विना जुगुत्साके साथ छठा चौबीस भंगोंका प्रकार होता है ६। जुगुप्साके विना भयकी उदीरणा करनेवाले सासादनसम्यग्दृष्टि जीवके अनन्वानुबन्धीका प्रवेश होनेसे सातवाँ चौषीस भंगोंका प्रकार होता है। भयके विना जुगुप्साका वेदन करनेवाले उसी जीवके आठवाँ चौबीस भंगोंका प्रकार होता है। संयुक्त प्रथम श्रावलिमें भयके साथ मिथ्यात्वका वेदन करनेवाले मिन्यादृष्टि जीवके नौवाँ चौबीस भंगोंका प्रकार होता है. ९ । भयके विना जुगुप्साके साथ मिथ्यात्यकी उदीरणा करनेवाले जीवके दसवां चौबीस भंगोंका प्रकार होता है. १०। भय और जुगुप्साके विना अनन्तानुबन्धीके साथ मिथ्यात्वका बेदन करनेवाले जीवके ग्यारहवां चौबीस भंगोंका प्रकार होता है ११ । इस प्रकार आठ प्रकृतियोंके प्रवेशक जीवके ग्यारह प्रकारके चौबीस भंग प्राप्त होते हैं। यहां सब . भंगोंका जोड़ दो सौ चौसठ २६४ होता है। * नौ प्रकृतियोंके प्रवेशक जीवके छह चौबीस भंग होते हैं ।
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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