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३८० जयधवलासहिदे कसायपाहुङ
। वेदगो . जाव सत्तमा त्ति । बरि सगयोसणं । एवरि सत्तमाए मिच्छ० अबत्त० खेत्तं । पढ़माए खेत्तभंगो।
८१९. तिरिक्खेसु मिच्छ० असंखे०भागवटि-हाणि-अवष्टि सबलोगो । दोवडि-हाणि लोग० असंखे भागो सब्बलोगो वा। अवत्त० लोग० असंखे भागो सत्तचोदस० | असंखे०गुणहाणि० खेत्तं । एवं गबुस । णवरि असंम्खे गुणहाणि. णथि । अवत्त० लोग. असं भागो सब्दलोगो वा । एवं सोलसक०-छण्णोक० | णवरि अवत्त० के० पो. ? सन्नलोगो । सम्म०-सम्मामि० खेतं । णवरि सम्म० असंखे०भागहाणिक लोग असंखे भागो लचोदसः। इस्थिवेद-पुरिसवेद० तिण्णिबड्डि०-अववि० खेत्तभंगो। तिणिहाणि अयत्त लोग असंखे०भागो सबलोगो वा ।
८२०, पंचिंतिरिक्खतिय० मिच्छ०-सोलसक०-णवणोक० सव्यपद० लोग० असंखे०भागो मुघलोगो बा । णवरि मिच्छ० अवत्त० लोग. असंखे०भागो
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कुछ कम पाँच भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सम्यक्त्व और सम्यम्मिथ्यात्वका भंग क्षेत्रके समान है। इसीप्रकायाभूपविधिवशेोर्वरीसाधीक्विीनका महापकियोंमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि अपना-अपना स्पर्शन कहना चाहिए। इतनी और विशेषता है कि सातवीं पृथिवीमें मिथ्यात्वकी प्रवक्तव्य स्थिति के उदीरक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। पहिली पृथिवीम स्पर्शन क्षेत्रके समान है।
६८१६. त्तियश्चोंमें मिथ्यात्वकी असंख्यात भागवृद्धि, असंख्यात भागहानि और अवस्थित स्थितिके उदीरकाने सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका पर्शन किया है। दो वृद्धि और दो हानि स्थितिके उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और सर्व लोकप्रमाग क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अवक्तव्य स्थिति के उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और वसमालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम सात भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। असंख्यात गुणहानि स्थितिके उदीरकोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। इसीप्रकार नपु'समवेदकी अपेक्षा जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इसकी असंख्यात गुणहानि स्थिति नदीमा नहीं है। प्रवक्तव्य स्थितिके उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इसीप्रकार सोलह कषाय और छह नोकषायकी अपेक्षा जानना चाहिए । इतनी विशेपता है कि इनकी प्रवक्तव्य स्थितिके उदारांने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सम्यक्रम और सम्यग्मिथ्यात्वका भंग क्षेत्रके समान है। इतनी विशेषता है कि सम्यक्त्वकी असंख्यात भागहानि स्थितिके उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और बसनालाक चौदह भागांमसे कुछ कम छह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन क्रिया है। स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी तीन वृद्धि और अवस्थित स्थितिक उदीरकोका सर्शन क्षेत्रके समान है। तीन हानि और अवक्तव्य स्थितिके उदीरकोंने लोकके असंख्यात भाग और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है।
६८२०, पञ्चेन्द्रिय तिर्यचत्रिकमें मिथ्यात्व, सोलह कपाय और नौ नोकपायके सब पदोंकी स्थितिके उदीरकोंने लोकके असंख्यानवे भाग और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इतनी विशेषता है कि मिथ्यात्वी प्रवक्तव्य स्थिति के उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें