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________________ गा० ६२] उत्तरपयद्धिद्विविउदीरणाए वविडिदिउदीरणाणिश्रोगहार ३७६ हाणि केन० फोसिदं ? लोग असंखे भागो। सम्मसम्मामि० सव्यपद० केव० पोसिदं ? लोग० असंखे०भागो । अनुचोइस० । णवरि सम्म० असंखेजगुणहाणि. खेत्तं । इथिवे०-पुरिसवे. तिण्णिवडि-अपट्टि० के० फोसिद्ध ? लोग० असंखे०भागो अट्टचोद्दस । तिपिणहाणि केव० पोसिदं ? लोग० असं०भागो अट्टचोइस० देसूरमा सबलोगो वा। अवत्त० लोग असंखे भागो सबलोगो बा। असंखे०गुणहाणि खेत्तं । पुरिस० असंखे गुणवडि-हाणि खेत्तं । णस० मिच्छत्तमंगो । णवरि दोबडि-हाणि-अवत्त. लोग असंभागो सबलोगों वा । असंखेगुणहाणि खेत्तं । १८. आईसेण णेरडय० मिच्छ-सोलसक-सनणोक० मध्यपदा० केव० मार्गपरेको लगवा संखेसम्मणीबोइस हायवरि मिच्छ० असंखे० गुणहाणि० खेत्तं । अवत्त० लोग० असंखे०भागो पंचचोदस० । सम्म०-सम्मामि० सेत्तं । एवं विदियादि स्पर्शन किया है। चार संज्वलनकी असंख्यात गुणवृद्धि और असंख्यात गुग्गाहानि स्थितिके जदीरक जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? लोकके असंख्यातवें भागप्रमागम क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके सच पदीकी स्थिति के उदीरक जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग तथा त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम भाठ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इतनी विशेषता है कि सम्यक्त्वकी असंख्यात गुणहानि स्थितिके उदीरक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रक समान है। स्त्रीवेद और पुरुषवेदका तीन वृद्धि और अवस्थित स्थितिके उदीरक जीवाने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? लोकके असंख्याता भाग और त्रसनाली के चौदह भागों में से कुछ कम आठ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। तीन हानि स्थितिके उदीरक जीवोने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? लोकके असंख्यानवें भाग, मनालीके चौदह भागोंमेंसे आठ भाग और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अवक्तव्य स्थितिके उदीरक जीवाने लोकके असंख्यातवें भाग और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। असंख्यात गुण हानि स्थितिक उदीरक जीवाका स्पर्शन क्षेत्र के समान है। पुरुषवेदकी असंख्यान गुणवृद्धि और असंख्यात गुगाहानि स्थिति के उदीरक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रक समान है। नपुंसकवेदका भंग मिथ्याल्के समान है। इतनी विशेषता है कि दो घृद्धि, दो हानि और प्रवक्तव्य स्थिति के उदीरक जीवोंने लोकके असंख्यान माग और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। असंख्यात गुरणहानि स्थिति के उदीरक जीवाका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। विशेषार्थमिथ्यात्वादि किस प्रकृतिके कौन कौन पद हैं और उनका स्वामी कौन-कौन जीव है. इसका स्वामित्वानुगमसे विचार कर स्पर्शन जान लेना चाहिए। इसीप्रकार चार्ग गतियों और उनके अवान्तर भेदोंमें भी स्पर्शन ज्ञान लेना चाहिए । ८१८. आदेशसे नारकियोंमें मिथ्यात्व, सोलह कपाय और सान नोकपायके सब पदोंकी स्थितिके उदीरक जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ! लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनालीके चौदह भागोंसे छह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इतनी विशेषता है कि मिथ्यात्वकी असंख्यात गुगाहानि स्थिति के उदीरक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। भवक्तव्य स्थिति के उदीरक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग और बसनाली के चौदह भागामसे
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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