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मार्गदर्शक :- आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज गा० ६२] उत्तरपयडिविदिउदीरणाए वढिविदिउदीरणाणियोगारं ३८१ सत्तचोदस० । असंखे० गुणहाणि० इस्थिवेद-पुरिसवेद तिग्णिवाहि-अवढि०-अवत्ता पत्रुस०-अवत्त० केव० पो० ? लोग० असंखे०भागो। सम्म० सम्मामि० तिरिक्खोपं । णवरि पज० इस्थिवेदो पत्थि । जोणिणीसु पुरिस०-णवूस. णस्थि । इथिवेद० अवत्त० णस्थि । पंवि०तिरिक्खअपञ्ज-मगुसअपज० मिच्छ०-सोलसक०-सत्तणोक. सयपद केव० खेत्तं पोमिदं ? लोग० असंखे० भागो सबलोगो वा। मणुसतिए पंचिंदियतिरिक्खतियभंगो। णवरि सम्म०-सम्मामि० खेत्तं । मिच्छ०-चदुसंजल.. तिण्णिवेद. असंखेगुणहाणिक खेत्तं । वरि पज. इस्थिवे. पत्थि । मणुसिणी. पुरिसवे०-णबुस० णस्थि ।
८२१. देवेसु अप्पणो पडि० सव्वपद० लोग० असंखे०भागो अट्ठ. चोइस० । णवरि मिच्छ० असंखे गुणहाणि० सम्म-सम्मामि० सम्वपदा० इथिवेकपुरिसवे० तिरिणवडि-अवट्ठि. अट्टचोद्दम० । एवं सोहम्मीसाण० | एवं भरणबागवे ०-जोदिसि० । परि जम्हि अट्टचोदस० तम्हि अधुट्ठा या अनोइस० । भाग और त्रमनालीके चौदह भागामें कुछ कम सात भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इसकी असंख्यात गुणहानि स्थिति, स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी तीन बृद्धि, अवस्थित और अवक्तव्य स्थिति तथा नपुसकबंदकी श्रवक्तव्य स्थिति के उदीरकोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? लोकके असंख्यातवें भागप्रमाग क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिन्यात्वका भंग सामान्य निर्योंके समान है। इतनी विशेषता है कि पर्यातकोंमें स्त्रीवेद नहीं है । योनिनियों में पुरुषवेद और नपुसकवेद नहीं है तथा स्त्रावेदकी श्रवक्तव्य स्थितिउदीरणा नहीं है। पञ्चेन्द्रिय तिर्यन अपर्याम और मनुष्य अपर्याप्तकों में मिथ्यात्व, सोलह कषाय भोर सात नोकषायके सब पदोंकी स्थिति के उदीरकोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। मनुष्यत्रिक पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चत्रिके समान भंग है। इतनी विशेषता है कि सम्यक्त्व श्रीर सभ्यग्मिथ्यात्वका भंग क्षेत्रके समान है। मिथ्यात्व, चार संज्वलन और तीन वेदकी असंख्यात गुणहानि स्थितिके उदोरकों का स्पर्शन क्षेत्रके समान है। इतनी विशेषता है कि पर्याप्तकोंमें स्त्रीवेद नहीं है तथा मनुपियमियों में पुरुपवेट और नपुसकवेद नहीं है।
६८२१. देवों में अपनी-अपनी प्रकृतियोंके सब पदोंकी स्थिति के उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनालीके चौवह भागों से कुछ कम पाठ भागममाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इतनी विशेषता है कि मिथ्यात्वकी असंख्यात गुणहानि स्थिति, सम्यक्त्व और सम्यग्मिध्यात्वके सत्र पदोंकी स्थिति तथा स्त्रीवेद और पुरुपवेदकी सीन वृद्धि और अवस्थित स्थितिके नदीरकोंने ब्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इसीप्रकार सौधर्म और ऐशानकल्प में जानना चाहिए | सथा इसीप्रकार भवनवासी, व्यन्तर और ज्योतिषी देवोंमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि जहाँ 'वसनालीके चौदह भागों में से कुछ कम पाठ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है।' यह कहा है वहाँ 'सनातीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम साढ़े तीन और आठ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। यह कहना चाहिए।