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________________ vwww.MARA. जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [वेदगो ७ छएणोक० जह• एगस०, उक्क० अंतोमु । पुरिसवेद० जहएणुकस्सहिदी । एवं जाव। ४५. अंतराणु० दुविहो णि--ोघेण श्रादेसे । ओघेण मिच्छ. उदीर० अंतरं जह० अंतोमु०, उक्क० बेलाबहिसागरो० देखणाणि । सम्म०-सम्मामि० जह० अंतोमु०, उक्क० अद्धपोग्गल० देसूणाणि । अणंताणु०चउक० जह० एयस०, उक० वेछावद्विसागरो० देसूणाणि । अट्टक. जह० एयसमओ, उक. पुष्वकोडी देसूणा । चदुसंज-मय-दुगुंछ, जह० एयस०, उक. अंतोमु । हस्स-रदि० जह० एयस०, उक्क० तेत्तीसं सागरो० सादिरेयाणि । अरदि-सोग. जह• एयस०, उक० छम्मासा । इथिके-पुरिसवे० जह• अंतोमु० एगस०, उक्क० अणंतकालमसंखेजा पोग्गलपरिया । णवंस० जह• अंतोमु०, उक्क० सागरोवमसदपुधत्तं । घारह कषाय और छह नोकपायोंके उदीरकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। पुरुषवेदके उदीरकका जघन्य और उत्कृष्ट काल अपनी जघन्य और उत्कृष्ट स्थितिप्रमाण है । इसीप्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए । विशेषार्थ---भवनत्रिकमें क्षायिक सम्यक्त्वके सन्मुख वेदकसम्यग्दृष्टि जीवोंकी उत्पत्ति नहीं होती, इसलिए उनमें सम्यक्त्वकै उदारकका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त कहा है । किन्तु अन्यत्र ऐसे जीवकी उत्पत्ति होती है, इसलिए सामान्य देवोंमें और सौधर्म कल्पसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंमें सम्यक्त्वके उदीरकका जवन्य काल एक समय बन जानेसे वह तत्प्रमाण कहा है। हास्य और रतिके उदीरकका ओघसे जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल छह महीना पहले बतला आये हैं। यह काल सामान्यसे देवोंमें प्राप्त होकर भी वह शतार और सहस्रार कल्पमें ही प्राप्त होता है, अन्यत्र नहीं। इसलिए यहाँ पर सामान्य देवोंमें बह काल ओरके समान यतला कर शतार और सहस्रार कल्पमें उक्त अर्थको फलित करनेके लिए. उसे सामान्य देवोंके समान जाननेकी सूचना को है। शेष कथन सुगम है। ४५. अन्तरानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश। ओघसे मिथ्यात्वके उदीरकका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम दो छयासठ सागर है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके उदीरकका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहते है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम अर्धपुद्गल परिवर्तन प्रमाण है। अनन्तानुबन्धीचतुष्कके उदीरकका जघन्य अन्तर एक समय है, और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम दो छयासठ सागर हैं। आठ कषायोंके उदीरकका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम एक पूर्वकोटि है। चार संज्वलन, भय और जुगुप्साके उदीरकका जघन्य अन्तर एक समय है. और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। हास्य और रतिके उदीरकका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक तेतीस सागर है। अरवि और शोकके उदीरकका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर छह महीना है। स्त्रीवेद और पुरुषवेदके उदीरकका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त और एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अनन्त काल है जो असंख्यात पुद्गल परिवर्तन प्रमाण है । नपुंसकवेदके उदीरकका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहर्त है और उत्कृष्ट अन्तर सौ सागरपृथक्त्वप्रमाण है।
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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