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________________ मार्गदर्शक :- आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पेदगो ७९० श्रादेसेण णेरइय० मिच्छ०-सोलसफ०-हस्स-रदि-भय-दुगुंछाणं असंखे०भागवड्डी जह० एयस०, उक्क० बेसमया ससारस समया। असंखे० भागहारिण-अवहि. जह० एयस०, उक्क० अंतोसु० । सेसपदाणं जह० उक्क० एगस० । सम्म० असंखेभागहा० जह० एगस०, उक्क० तेत्तीसं सागरो० देसूणाणि । सेसपदाणं बह० उक० एगस० । अरदि-सोगाणं इस्सभंगो। णवरि असंखे० भागहा. जह• एयस०, उक्कर पलिदो० असंखे भागो । एवं रणवुस० | णवरि असंखे० भागहाणी ओघं | सम्मामि० श्रोधं । एवं सत्तमाए । णवरि सम्म० असंखे०भागहाणी अह. अंतोमु०, उक्क. उसी क्रमसे उसकी उदीरणा करता है उसके मिथ्यात्वकी असंख्यात भागहानि स्थिसिमीरणाका जघन्य काल एक समय प्राप्त होता है। तथा जो जीव नीव प्रवेयकमें इकतीस सागर कालतक मिथ्यात्वकी असंख्यात भागहानि स्थितिउदीरणा करके मनुष्यों में उत्पन्न हो तत्प्रायोग्य काल तक प्रसंख्यात भागहानि स्थितिउदीरणा करता रहता है उसके मिथ्यात्यकी असंख्याद भागहानि स्थितिउदीरणाका उत्कृष्ट काल साधिक इकतीस सागर प्राप्त होता है। यहाँ इतना विशेष जानना चाहिए कि नौवें अवेयकमें जानेके पूर्व भी तत्प्रायोग्य काल तक मसंख्यात भागहानि स्थितिजदीरणा बन जाती है। मिथ्यात्वको संख्यात भागहानि और संख्यात गुणहानि स्थितिउदीरणा अपने-अपने योग्य काण्डकघातकी अन्तिम कालिके पतनके समय एक समयतक ही होती है तथा असंख्यात गुणहानि स्थितिबदीरमा मिथ्यात्वकी उपशमनाके कालमें एक समय तक होती है, इसलिए इन तीन हानियोंका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय ही प्राप्त होता है। अवक्तव्य स्थितिउदीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय तथा अवस्थित स्थिति। उदीरणाका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है यह स्पष्ट ही है। यहाँ मिथ्यात्व कर्मकी असंख्यात भागवृद्धि स्थितिउदीरणा आदिके जघन्य और उत्कृष्ट कालका जिस प्रकार खुलासा किया उसीप्रकार अन्य प्रकृतियोंके यथायोग्य पदोंका खुलासा कर ले चाहिए। तथा गतिमार्गणाके भेद-प्रभेदोंमें भी इसीप्रकार विचार कर कालप्ररूपणा आन लेनी चाहिए। ६०. श्रादेशसे नारकियोंमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय, हास्य, रति, भय और जुगुप्साकी असंख्यात भागवृद्धि स्थितिउदीरणाका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल मिध्यात्वका दो समय तथा शेषका सत्रह समय है। असंख्यात भागहानि और अवस्थित स्थितिषदोरणाका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। शेष पदोंका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । सम्यक्त्वकी असंख्यात भागहानि स्थिति उचारणाका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल कुछ कम तेतीस सागर है। शेष पदोंका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अरति और शोकका भंग हास्यके समान है। इतनी विशेषता है कि इनकी असंख्यात भागहानि स्थितिउदीरणाका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यात भागप्रमाण है । इसीप्रकार नपुंसकवेदकी अपेक्षा जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि असंख्यात भागहानि स्थितिउदीरणाका काल ओघके समान है। सम्यग्मिध्यात्वका भंग बोचके समान है। इसीप्रकार सातवीं पृथिवीमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि सम्यक्त्वकी असंख्यात भागहानि स्थितिउदीरणाका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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