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________________ " गा• शर्मदर्शक : उत्तरपयविहिदिउदीरणाप डिडिदिउदीरणाणि श्रगारं : ३६३ 1 तेत्तीसं सागरो० देणाणि । एवं पदमाए जाव छट्टि ति । त्ररि सगहिदी देवणा । अरदि- सोग० हस्तभंगो । खवरि पढमाए सम्म० श्रसंखे० भागहा० जह० एयस०, उक० सागरोवमं देणं । I ६७९१. तिरिखखे मिच्द्र० श्रोधं । वरि असंखे० भागहारिण० जह० एस ०, उक० तिरिए पलिदो० नादिरेयाणि । सम्म० संखे० भागहारिण 1० जह० एयस०, उक० तिष्णि पलिदो० देणाणि । सेसपदाणं जह० उक० एयम० । सम्मामि० श्रोधं | सोलमक० छोक० असंखे० भागवडि० श्रोधं । असंखे० भागहा० जह० एयस०, उक्क० अंतोमु० | सेसपदा मिच्छत्तभंगी । इत्थिषे० - पुरिसवेद० अष्पष्पणो पदाणमोचं । वर असंखे० भागहाणि० मिच्छत्तभंगो | स० इस्समंगो । गवरि असंखे ० भागहा० जह० एस० उक० पलिदो ० श्रसंखे० भागो । एवं पंचिदियतिरिक्खतिए । वरि मिच्छ० - सोलसक० सत्तणोक० संखे० भागवडि० जह० उ० एस० | स० असंखे० भागहा० जह० एस ० उक० पुन्त्रकोडिषुधत्तं । वरि पजत इस्थिवेदो गत्थि । जोगिणी० पुरिस० स० णत्थि । इस्थिवे० प्रवत्तन्वं च णत्थि । सम्म० असंखे० भागहाणि० जह० अंतीमु०, उक० तिरिए पलिदो ० t काल कुछ कम तैतीस लागर है । इसीप्रकार पहली पृथिवीसे लेकर छठी पृथिवीतकके नारकियोंमैं जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि कुछ कम अपनी-अपनी स्थिति कहनी चाहिए । अरति और शोकका भंग हास्य के समान है । इतनी विशेषता है कि पहली पृथिवी में सम्यक्त्वकी संख्या भागानि स्थितिउदीरखाका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल कुछ कम एक सागर है। ७१. तिर्यों में मिध्यात्वका भंग घोघके समान है। इतनी विशेषता है कि असंख्यात भागहानि स्थितिउदीरणका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल साधिक तीन पल्य है । सम्यक्त्वकी असंख्यात भागहानि स्थितिउदीरणा का जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल कुछ कम तीन पल्य है। शेष पदोंका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । सम्यग्निध्यात्वा भंग के समान है। सोलह कषाय और छह नोकपायोंकी असंख्यात भागवृद्धि स्थितिउदीरणाका भंग श्रोध के समान है। असंख्यात भागहानि स्थितिउदीरणाका जघन्य काल एक समय है और चरकृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त हैं। शेष पदोंका भंग मिथ्यात्व के समान है। स्त्रीवेद और पुरुषवेदके अपने-अपने पदोंका भंग भोधके समान हैं। इतनी विशेषता है कि असंख्यात भागहानि स्थितिउदीरणाका भंग मिध्यात्वके समान है। नपुंसक वेदका भंग हास्यके समान है । इतनी विशेषता है कि असंख्यात भागद्दानि स्थितिउदीरणाका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पल्यके श्रसंख्यातवें भाग मा है । इसीप्रकार पचेन्द्रिय तिर्यवत्रिक में जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि मिध्यात्व, सोलह कषाय और सात लोकषायकी संख्यात भागवृद्धि स्थितिउदीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । नपुंसक वेद की असंख्यात भागहानि स्थितिउदीरणाका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पूर्वकोटिपृथक्त्व प्रभारण 電 । इतनी विशेषता है कि पर्यातकों में स्त्रीवेद नहीं है तथा योनिनियोंमें पुरुषवेद और नपुंसकवेद नहीं हैं और योनिनियोंमें खोवेदक अवक्तव्य स्थितिउदीरणा नहीं है। तथा इनमें की
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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