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________________ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ वेवगो. ७५९. देवेसु मिच्छ०-सोलसक-अट्ठणोक०-सम्म०-सम्मामि० पंचिंदियतिरिक्खभंगो। णवरि इथिवे गरिमः अश्वत्तापरिहासामचं आयाशिवाण ०. जोदिसि०-सोहम्मीसाणे त्ति । एवं समकमारादि सहस्सार त्ति । णवरि इस्थिवेदो णस्थि । ७६०. आणदादि जाव णवगेवजा त्ति मिच्छ०-सम्मामि०-सोलसक.. छण्णोक० अप्प०-अवत्त० णारयभंगो । पुरिसवेद० अप्प० णत्थि अंतरं । सम्म० श्रोघं । णवरि अवढि णस्थि । अणुद्दिमादि सबट्ठा ति सम्म० अप्प० णस्थि अंतरं । अवत्त० जह० एयस०, उक० चामपुधत्तं पलिदो संखे भागो । बारमक.. अण्णोक०-पुरिसवेद आणदभंगो । एवं जाव० । ६ ७६१. भावाणु० मध्यस्थ प्रोदइओ भावो । ३७६२. अप्पाबहुआणु० दुविहो णि०–ोण आदेसेण य। ओघेण मिच्छ०-गवूस. सव्वत्थोवा अवत्त । भुज.द्विदिउदी. अणंतगुणा । अवट्टि असंखेगुणा। अप्प० संखेगुणा । सम्म० सम्वत्थोत्रा अवट्टि उदी० । भुज. असंखे०गुणा । अवत्त० असंखे०गुणा। अप्प. असंखे०गुणा । सम्मामि. सनत्थो० ६ ७५६. देवा में मिथ्यात्व, सोलह कषाय, आठ नोकषाय, सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका भंग पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चोंके समान है। इतनी विशेषता है कि इनमें स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी अवक्तव्य स्थितिउदीरणा नहीं है। इसीप्रकार भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिषी तथा सौधर्म और ऐशानकल्पके देवोंमें जानना चाहिए । इसीप्रकार सनत्कुमार कल्पसे लेकर सहस्रार कल्पतकके देवोंमें जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि इनमें स्त्रीवेद नहीं है। ६७६०, आनतकल्पसे लेकर नौ अवयकतक देवोंमें मिथ्यात्व, सम्यग्मिध्यात्व, सोलइ कषाय और छह नोकपायकी अल्पतर और प्रवक्तव्य स्थितिके उदारकोंका भंग नारकियोंके समान है। पुरुषवेदकी अल्पतर स्थिति के उदीरकाका अन्तरकाल नहीं है। सम्यक्त्वका भंग श्रोचके समान है। इतनी विशेषता है कि यहाँ इसकी अवस्थित स्थिति उदारणा नहीं है। अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धित्तकके देवोंमें सम्यक्त्वकी अल्पतर स्थितिके उदोरकाका अन्तरकाल नहीं है। इसकी अवक्तव्य स्थितिके उदीरकोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर क्रमसे वर्षपृथक्त्व और पत्यके संख्यात भागप्रमाण है। बारह कषाय, छह नोकषाय और पुरुषवेदका भंग आनतकल्पके समान है। इसीप्रकार अनाहारक मार्गणातक जानना चाहिए। ६७६१. भावानुगमकी अपेक्षा सर्वत्र औदयिक भाव है। १७६२. अल्पबहुत्वानुगमको अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । श्रोषसे मिथ्यात्व और नपुसकचेदकी अवक्तव्य स्थितिके उदीरक जीव सबसे स्तोक हैं। इनसे भुजगार स्थितिके उदीरक जीव अनन्तगुणे हैं। इनसे अवस्थित स्थितिके उदीरक जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे अल्पतर स्थितिके उदीरफ जीव संख्यातगुणे है। सम्यक्त्वकी अवस्थित स्थितिके उदीरक जीव सबसे स्तोक हैं। इनसे मुजगार स्थितिके उदीरक जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे प्रवक्तव्य स्थिति के उदोरक जीव असंख्यातगुणे हैं । इनसे मल्पतर
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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