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________________ A उत्तर पर्याडद्विदिदीरणाए भुजगारअणियोगारं गा० ६२ ] ३४६ संखे० गुणा । सोलसक० - इराणोक० अवत्त ०डिदिउदी० । अप्प०डिदिउदी० द्विविदो श्रच द्विद्धिउदी ० संखे० गुणा । प्रत्रट्टि० द्विदिउदी० मार्ग त्यो ० मार्गदर्श 拼 संखे० गुणा । अप०डिदिउदी० संखे० गुणा । इत्थिवे० - पुरिसवे० सच्त्रस्थोवा अवत० । अडि० डिदिउदी० श्रसंखे० गुणा । अप्प० ड्डि दिउदी ० भुज ० द्विदिउदी० संखे० गुणा । संखे० गुणा । एवं तिरिक्खा० । Q ९ ७६३. आदेसेण णेरइय० सोलसक० छण्णोक० सम्म० सम्मामि० श्रोषं० । मिच्छ० सव्वत्थोवा श्रवत्त ० ड्डि दिउदी० | भुज० असंखे० गुणा । अडि० असंखे० गुणा । • डिदिउदी० संखे० गुणा । एवं रास० । वरि प्रवत्त० रात्थि । एवं सव्वणेरइय० । अप० 0 १७६४. पंचिदियतिरिक्खतिए ओघं । णवरि मिच्च० शत्रुस० सव्यत्थोवा अवस०डिदिउदी० । भुज० डिदिउदी० असंखे० गुणा । अवडि० उदी० असंखे० गुणा | अप० विदिउदी संखे० गुणा । एवरि पजत्तएस इस्थिवेदो गत्थि । सय० स० पत्थि । इत्थवे अवत्त० णत्थि । य पुरिसभंगो | जोखिली पुरिस० ९७६५. पंचि०तिरि० पञ्ज० - मणुस आपज० मिच्छ० णवु सय० सव्त्रत्थोवा स्थितिके उदीरक जीव असंख्यातगुणे हैं । सम्यग्मिथ्यात्व की अवक्तव्य स्थितिके उदीरक जीव सबसे स्तोक हैं । इनसे अल्तर स्थितिके वीरक व असंख्यातगुणे हैं। सोलह कषाय और नोकषायकी भुजगार स्थितिके वीरक जीव सबसे स्तोक हैं। इनसे अवक्तव्य स्थिति के उदीरक जीव संख्यातगुणे हैं। इनसे अवस्थित स्थितिके उदीरक जीव असंख्यातगुणे हैं । इनसे अल्पर स्थितिके उदीरक जीव संख्यातगुणे हैं। स्त्रीवेद और पुरुषवेदी प्रवक्तव्य स्थिति उदीर जी सबसे स्तोक हैं। इनसे भुजगार स्थितिके उदीरक जीव संख्यातगुणे हैं। इसे स्थित स्थितिके उदीरक जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे अल्पतर स्थितिके उदोक जीव संख्यातगुणे हैं। इसीप्रकार सामान्य तिर्यों में जानना चाहिए । ९७६३. आदेश से नारकियों में सोलह कषाय, छह नोकषाय, सम्यक्त्व और सम्यग्मि ध्यात्वा भंग श्रोघके समान है । मिध्यात्वकी अवक्तव्य स्थितिके उदोरक जीव सबसे स्तोक हैं । इनसे भुजगार स्थिति के उदीरक जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे अवस्थित स्थितिके उदीरक जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे अल्पत्तर स्थितिके उदीरक जीव संख्यातगुणे हैं । इसीप्रकार नपुंसक वेद की अपेक्षा जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि यहाँ इसकी अवक्तव्य स्थिति के उदीरक जीव नहीं है । इसीप्रकार सब नारकियोंमें जानना चाहिए । ६४. पचेन्द्रिय तिर्यञ्चत्रिक में ओके समान भंग है । इतनी विशेषता है कि ference और नपुंसकवेदकी अवक्तव्य स्थितिके उदीरक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे भुजगार स्थितिके उदीरक जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे अवस्थित स्थितिके उदीरक जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे अल्पतर स्थिनिके उदीरक जीव संख्यातगुणे हैं। इतनी विशेषता है कि पर्याप्तकों में वेद नहीं है । नपुंसकवेदका भंग पुरुषवेदके समान है। यानिनी तिर्यों में पुरुषवेद और नपुंसक वेद नहीं है। इनमें श्रीवेदकी अवक्तव्य स्थितिउदीरणा नहीं है। ३७६५ पचेन्द्रिय तिर्यच अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्तकों में मिध्यात्व और नपुंसक.
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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