SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 350
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 13 मा० ६२ ] उत्तरपयडिडिदिउदीरणाए भुजगारअगिद्दारं ३३७ अणुद्दिसादि सच्चा त्ति बामणोगमा हा भंगो | एवं जाव० । ३ ७३६. भागाभागानु० दुविहो णि० - श्रोषेण आदेसेण य । श्रोषेण मिच्छ० - बुंस० भुज० सन्नजी० के० भागो ? असंखे ० भागो । अप० संखेज्जा भागा | अवष्टि० संखे० भागो । श्रवत्त० श्रणंतभागो । सम्मामि० अप्प० द्विदिउदी० असंखेजा भागा। सेमपदा असंखे० भागो । सोलसक० - अशोक० चप्प० संखेजा भागा | अवडि० संखे० भागो । सेसपदा० श्रसंखे भागो । एवं तिरिक्खा | ६७३७. आदेसेख रइय० मिच्छ०-सोलसक० सत्तयोकंद अप्प०डिदिउद्दी संखेजा भागा । श्रवदि० संखे० भागो सेमपदा० श्रसंखे० भागो । सम्म० - सम्मामि० श्रोधं । एवं सव्वरइय० । 5 C i ६७३८. पंचि०तिरिक्खतिय० मिच्छ०- सोलसक० - वोकै० अप्प >डिदिउदी० संखेजा भागा । श्रवट्टि ० संखे - भागो । सेसप० सं० भागो । सम्म० - सम्मामि० श्रोघं । णवरि पञ्ज० इस्थि वेदो पत्थि । जोणिणीस पुरिसवे० - चुंस० णत्थि । इत्थिये० J 1 हैं। अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धितक के देवोंमें बारह कषाय और श्रनवकल्प के समान है | सम्यक्त्वका भंग हास्य के समान है । मार्गातक जानना चाहिए । O मात नोकषायका भंग इसीप्रकार अनाहारक ६ ७३६. भागाभागानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है - ओघ और श्रादेश । श्रघसे मिध्यात्व और नपुंसकवेदकी भुजगार स्थितिके उदीरक जीव सब जीवोंके कितने भागप्रमाण हैं ? असंख्यातवें भागप्रमाण हैं । अल्पतर स्थितिके उदीरक जीव संख्यात बहुभागप्रमाण हैं । अवस्थित स्थितिके उदीरक जीव संख्यातवें भागमा हैं । अवक्तव्य स्थितिके उदीरक जीव अनन्तयें भागना हैं। सम्यमिध्यात्वकी अल्पतर स्थितिके उदीरक जॉब असंख्यात भागप्रमाण हैं। शेष पदोंके उदीरक जीव असंख्यातवें भागप्रमाण हैं । सोलह कषाय और आठ लोकपाकी अल्पतर स्थितिके उदीरक जीव संख्यात बहुभागप्रमाण हैं । अवस्थित स्थितिके उदीरक जीव संख्यातवें भागप्रमाण हैं। शेष पदोंके उदीरक जीव असंख्यातवें भागप्रमाण हैं । इसीप्रकार तिर्यों में जानना चाहिए । ६७३७. आदेश से नारकियों में मिध्यात्व, सोलह कषाय और सात नोकपायकी अल्पतर स्थिति के उदीरक जीव संख्यात बहुभागप्रमाण हैं । अवस्थित स्थितिके उदीरक जीव संख्यात भागप्रमाण हैं। शेष पदोंके उदीरक जीव असंख्यातवें भागप्रमाण है । सम्यक्त्व और सम्यमिध्यात्वका भंग ओधके समान है । इसीप्रकार सब नारकियों में जानना चाहिए । ३८. पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चनिकमें मिध्यात्व, सोलह कषाय और नौं सोकषायकी अल्पतर स्थितिके उदीरक जीव संख्यात बहुभागप्रमाण हैं । अवस्थित स्थितिके उदीरक जीव संख्या सर्वे भागप्रमाण हैं। शेष पदोंके उदीरक जीव असंख्यातवें भागप्रमाया हैं। सम्यक्त्व और सम्बग्मिध्यात्वका भंग ओघके समान है। इतनी विशेषता है कि पर्याप्तकों में स्त्रीवेद नहीं है । योनिनियामें १. ता० प्रती यव (सप्त) गोक० इति पाठः । २ ता०प्रतौ सन्तोक इति पाठः । ४३
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy