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________________ ३३८ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ वेदगो अवत्त० णस्थि । पंचितिरिक्खअपज०-मणुसअपज० मिच्छ०-सोलसक०-सत्तणोक० अप्पद० संखेजा भागा । अवडि० संखे०भागो । सेसपदा० असंखे०भागो।। 3. ७३९. मणुसेसु मिच्छत्त-सोलयक०-सत्तणोक० पंचिंदियतिरिक्खभंगो।। सम्म०-सम्मामि०-इत्थिवे.-पुरिसके० अप्प० संखेा भागा। सेमपदा संखे भागो।। मणुसपन्ज-मसिणी. सव्वषय० अप्पद० संखेजा भागा । सेसपदा संखे भागो। ७४०. देवेसु मिच्छ०-सोलसक०-अट्ठणोक० अप्प संखेजा भागा। अवढि० संखे०भागो । सेसप० असंखे०भागो । सम्म०-सम्मामि० श्रोघं । एवं भवण-घाणवेंजोदिसि०-सोहम्मीसाणे ति । एवं सणकुमारादि सहस्सार त्ति । णवरि हस्थिवेदो णस्थि। 5 ७४१. प्राणदादि णवगेवजा त्ति मिच्छ०-सम्मामि०-सोलसक०-छण्णोक० अप्प० असंखेजा भागा। सेसप० असंखे०भागो। पुरिमबे० णत्थि भागाभागो। अणुद्दिसादि सबट्ठा ति सम्म०-बारसक-पणोक. अप्प. असंखे०भागा । अवत्त. असंखे०भागो। पुरिसवे. एस्थि भागाभागो। एबरि सबढे संखैझं कादध्वं । एवं जाव० । मार्गदर्शक: शौचावासावधिसागर जी महाराज पुरुषवेद और न सकवेद नहीं है। इसमें स्त्रीवेदकी अवक्तव्य स्थितिजदीरणा नहीं है। पंचेन्द्रिय तिर्यश्च अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्तकोंमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय और सात . नोकषायकी अल्पतर स्थितिके उदीरक जीव संख्यात बहुभागप्रमाण हैं। अवस्थित स्थित्तिके उदीरक जीव संख्यात भागप्रमाण हैं। शेष पदोंके उदीरक जीव असंख्यातवें भागनमाण हैं ! :--. $७३९. मनुष्योंमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय और सात नोकषायका भंग पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चोंके समान है। सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व, स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी अल्पतर स्थितिके उदीरक जीव संख्यात बहुभागप्रमाण हैं। शेष पदोंके उदीरक जीव संख्यातवें भागप्रमाण हैं। मनुष्य पर्याप्त और मनुष्यनियों में सब प्रकृतियोंकी अल्पतर स्थितिके उदीरक जीव संख्यात बहुभागप्रमाण हैं । शेष पदोंके उदीरक जीव संख्यातवें भागप्रमाण हैं। ७४०. देवोंम मिथ्यात्व, सोलह कषाय और आठ नोकपायकी अल्पतर स्थिसिके उदीरक जीव संख्यात बहुभागप्रमाण है । अवस्थित स्थितिके उदीरक जीव संख्यातवे भागप्रमाण हैं। शेष पदोंके उदीरक जीव असंख्यातवे भागप्रमाण हैं। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका भंग पोषके समान है। इसीप्रकार भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिषी देवों तथा सौधर्म और ऐशान कल्पके देवों में जानना चाहिए । इसीप्रकार सनत्कुमार कल्पसे लेकर सहस्रार कल्पतकके देवोंमें जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि इनमें स्त्रीवेद नहीं है। ६७४१. मानतकल्पसे लेकर नौ अवेयकतकके देवोंमें मिथ्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व, सोलह कषाय और छह नोकषायकी 'अल्पतर स्थितिके उदीरक जीव असंख्यात बहुभागप्रमाण है। शेष पदोंके उदीरक जीव असंख्यात भागप्रमाण हैं। पुरुषवेदकी अपेक्षा भागाभाग नहीं है। अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धितकके देवोंमें सम्यक्त्व, बारह कषाय और छह नोकषायकी अल्पतर स्थिति के उदीरक जीव असंख्यात बहुभागप्रमाण हैं। अवक्तव्य स्थिति के उदीरक जीव असंख्यातवे भागप्रमाण हैं। पुरुषवेदकी अपेक्षा भागाभाग नहीं है। इतनी विशेषता है कि सार्थसिद्धि में असंख्यातके स्थानमें संख्यात करना चाहिए। इसीप्रकार अनाहार क. मार्गणा
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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