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________________ ३३६ जयधवलाहिने कसायपाहुडे स० पत्थि । इत्थवे० अवत्त० स्थि० | पंचिदिय यि । जोली पुरिसवे० तिरिक्ख अपज० मिच्द० ए० अध्य० अट्टि० निय० भुज० डिदिउदीरगो चुसिया पढ्डे च भूज हिदिदी अप्प० - अवट्टि णिय० अस्थि । सेसंपदाणि भणिजाणि । मणुसतिए पंचि ०तिरिक्खतियभंगो। एवरि मणुसिणी ० इस्थिवे० प्रवत्त अस्थि । मणुस अपज० सध्यपयडीणं सच्चपदा० भवणिजाणि । श्रत्थि, सिया एदे च सोलसक० अष्णोक० :- श्री 0 [ बेदगो 0 १७३४. देवेसु मिच्छ०- सोलसक० कृष्णोक० सम्म० सम्मामि० पंचिदियतिरिक्खभंगो। इत्थिदे० - पुरिसवे० अप्प० श्रवट्टि० निय० अस्थि, सिया एदे च भुजगारी च, सिया एदे च भुजगारा च । एवं भवण० त्राण ० - जोदिसि ०सोहम्मीसाण० । एवं सणकुमारादि जाव सहस्सार ति । णवर इन्थिवेदो णत्थि | १७३५. ऋणदादि एवगेवजा चि मिच्छ०- सोलसक० छण्णोक० अप्प० निय० अस्थि, सिया एदे च अवत्तन्नगो च, सिया एदे च श्रवं । वरि अव० णत्थि । सम्मामि० ओषं । पुरिसवे० I तव्वगा च । सम्म० अप्प० निय० श्रत्थि । ध्यात्वका भंग ओघ के समान है। इतनी विशेषता है कि पर्याप्तकों में स्त्रीवेदको उदीरणा नहीं है तथा यानिनियों में पुरुषवेद और नपुंसकवेदको उदीरणा नहीं है। इनमें स्त्रीवेदकी अवक्तव्य स्थितिउदीरणा नहीं है । पञ्चेन्द्रिय नियंच अपर्याप्तकों में मिध्यास्त्र और नपुंसकवेदक अल्पतर और अवस्थित स्थितिके उदीरक जीव नियमसे हैं, कदाचित् ये जीव हैं और भुजगार स्थितिका उदीरक एक जीव है, कदाचित् ये जीव हैं और भुजगार स्थितिके उदीरक नाना जीव हैं । सोलह कषाय और छह नाकषायकी अलवर और अवस्थित स्थितिके उदीरक जीव नियमसे हैं। शेष पद भजनीय हैं। मनुष्यत्रिक में पंचेन्द्रिय तिर्यंचत्रिक के समान भंग हैं । इतनी विशेषता है कि मनुष्यनियोंमें स्त्रीवेद्रकी प्रवकव्य स्थितिउदीरणा है। मनुष्य अपर्याप्तकों में सब प्रकृतियों के सब पद भजनीय हैं। ७३४. देवों में मिथ्यात्व, सोलह कपाय, छह नोकषाय, सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका भंग पंचेन्द्रिय तिर्थचोके समान है। स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी अल्पतर और अवस्थित स्थिति के उदीरक जीव नियमसे हैं, कदाचित् ये जीव हैं और भुजगार स्थितिका उदीरक एक जीव है, कदाचित् ये जीव हैं और भुजगार स्थितिके उदीरक नाना जीव हैं । इसीप्रकार भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिषी तथा सौधर्म- ऐशानकल्पके देवामें जानना चाहिए। इसीप्रकार सनत्कुमार कल्पसे लेकर सहस्रार कल्पतक देवोंमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनमें स्त्रीवेदकी स्थितिउदीरणा नहीं है । ७ ३ ७३५, आनतकल्पसे लेकर नौ ग्रैवेयकतकके देवों में मिध्यात्य, सोलह कषाय और छह नोकषाय की अल्पतर स्थितिके उदीरक जीव नियमसे हैं, कदाचित् ये जीव हैं और अवक्तव्य स्थितिका उदीरक एक जीव है, कदाचित् ये जीव हैं और अवक्तव्य स्थितिके उदीरक नाना जीव हैं। सम्यक्त्वका भंग ओके समान है । इतनी विशेषता है कि अवस्थित पद नहीं है । सम्यग्मिथ्यात्वका भंग ओघ के समान है । पुरुषवेदकी अल्पतर स्थितिके उदीरक जीव नियमसे
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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