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________________ गा०६२] उत्तरपयडिविविवदीरणाए भुजगारप्रणियोगदार २३५ अंतरं। अणुद्दिसादि सबट्ठा ति सम्म० अप्प०-अवत्त० पुरिसवे० अप्प० णस्थि अंतरं । वारसक० -छपणोक० अप्पद०-अवत्त० जह० उक० अंतोमु० । एवं जाव | ७३१. णाणाजीवेहि भंगविचयाणु० दुविहो णि-मोघेण आदेसेण य । ओघेण मिच्छ०-णस० भुज-अप्प० अबढि० णिय० अस्थि, सिया एदे य अचत्तवगो य, सिया पदशक अवतचा असा अपाणिः अस्थि । सेसपदाणि भयणिजाणि । सम्मामि० अप्पद-अवत्त० भयणिञ्जा। सोलसक०छण्णोक० सयपदा णिय० अस्थि । इथिवे०-पुरिसवे अप्प० अवद्वि० णिय० अस्थि । सेसपदा० भयणिजा० । एवं निरिक्खा० । ६. ७३२. श्रादेसेण णेरड्य० मिच्छ०-सोलसक०-छण्णोक० अप्प अवट्टि णिय. अस्थि । सेसपदा० भयणिजाणि । मुम्म-सम्मामि० अोघं । णस० अप्पाअवट्ठि• पिय. अस्थि, सिया एदे य भुजगारहिदिउदीरगो य, सिया एदे च सुज०-विदिउदीरगा च । एवं सत्रणेरइय० । ७३३. पंचिंदियतिरिक्वतिए मिच्छ०-सोलसक०-णवणोक० अप्प०-अवट्टि णिय० अस्थि । सेसपदा भयणिज्जा । सम्म० सम्मामि० श्रोघं । णयरि पञ्ज० इस्थिवेदो अवक्तव्य स्थिति उदीरमाका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। पुरुषवेदकी अल्पतर स्थिति उदीरणाका अन्तरकाल नहीं है। अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धिसकके देवों में सम्यक्त्वकी अल्पतर और प्रवक्तव्य स्थिति उदीरणाका तथा पुरुषवेदकी अल्पतर स्थितिउदीरणाका अन्तरकाल नहीं है। बारह कपाय और छह नोकषायकी अल्पतर और प्रवक्तव्य स्थिति उदीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। इसीप्रकार अनाहारक मार्गणातक जानना चाहिए। ७३१. नाना जीवों का अवलम्बन लेकर भंगविचयानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है--प्रोघ और आदेश। प्रोबसे मिथ्यात्व और नपुसकवेदकी भुजगार, अल्पतर और अवस्थित स्थितिके उदीरक जीव नियमसे हैं, कदाचित् ये जीव हैं और प्रवक्तव्य स्थितिका उदीरक एक जीव है, कदाचित् ये जीव हैं और अवक्तव्य स्थितिके उदीरक नाना जीव हैं। सम्यक्त्वकी अल्पतर स्थिति के उदीरक जीव नियमसे हैं। शेष पद भजनीय हैं । सम्यग्मिथ्यात्वके अल्पतर और प्रवक्तव्य पद भजनीय हैं। सोलह कषाय और छह नोकषायके सब पदक उदीरक जीव नियमसे हैं। स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी अल्पतर और अवस्थित स्थितिके उदीरक जीव नियमसे हैं। शेष पद भजनीय हैं । इसीप्रकार तिर्यञ्चोंमें जानना चाहिए। ७३२. आदेशसे मारकियों में मिथ्यात्व, सोलह कपाय और छह नोकपायकी अल्पतर और भय स्थित स्थितिके लदीरक जीव नियमसे हैं। शेष पद भजनीय हैं। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका भंग ओघके समान है। नपुसकवेदकी अल्पतर और अवस्थित स्थितिके उद्दीरक जीव नियमसे हैं, कदाचित् ये जीव हैं और भुजगार स्थितिका उदीरक एक जीव है, कदाचित् ये जीव हैं और भुजगार स्थितिके उदीरक नाना जीव है। इसीप्रकार सष नारकियों में जानना चाहिए। ६७३३. पंचेन्द्रिय तिर्यचत्रिकर्मे मिथ्यात्व, सोलह कषाय और नौ नोकषायकी अल्पतर चौर भवस्थित स्थितिके उदीरक जीव नियमसे हैं । शेष पद भजनीय है। सम्यक्त्व और सम्यग्मि
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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