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________________ १३४ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ वेदगो. एयस०, उफ. अंतोमु | एवं पुरिस० । णपरि अवत्त० णस्थि । सम्म० भुज०-. अप्प०-अवत० सम्मामि० अप्प०-अवत्त. जह० अंतोसु०, उक्क० एकतीसं सागरो० देसूणाणि । सम्म० अवढि जह. अंतोमु०, उक्क अवारस सागरो सादिरेयाणि । इस्थिवे. भूजल-अवढि० जह० एयस, उक्क पणवण्णं पलिदो० देसूणाणि । अप्पा जह० एगस०, उक्क • अंतोमु० । एवं भवणादि जाब सहस्सार ति । णवरि सगहिदीओ भारिणदबाओ । हस्म-रदि अरदि-सोग० अप्प०-अवत्त० जह० एगस० अंतीमु०, उक० अंतोमु० । सहस्सारे हस्स-रदि-अरदि-सोग० अप्प०-प्रवत्त० देवोघं । वरि भवण.. वारणवे-जोदिसि०-सोहम्मीसाण० इत्थिवेद० भुज०-अवडि• जह० एगस०, उक्क. पाहिरिया पलिोध शुशिहालिदोषासादियाणि-पलि. सादिरे. पणवएणं पलिदो० देसूणाणि । अप्प० जह० एयस०, उक्क० अंतोमु० । उवरि इत्थिवेदो गस्थि । ६७३०. आणदादि पवगेवजा ति मिच्छ०-सम्मामि०-अणंताणु०४ अप्प०अवत्त० सम्म० भुज०-अप्प० अवत्त० जह. अंतोमु०, उक्क. सगढिदी देमणा । बारसक-छपणोक० अप्प-अवत्त० जह० उक० अंतोमु० । पुरिसवे. अप्प० स्थि हास्य और रतिकी अपेक्षा जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इसकी अल्पतर स्थितिउदीरणाका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तमहते है। इसीप्रकार पुरुषवेदकी अपेक्षा जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि इसकी प्रवक्तव्य स्थितिउदीरणा नहीं है। सम्यक्त्वकी भुजगार, अल्पतर और अवक्तव्य स्थितिउदीररणाका तथा सम्यग्मिथ्यात्वकी अल्पतर और प्रवक्तव्य स्थिति नदीरणाका जघन्य अन्तर अन्तर्महूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम इकतीस सागर है । सम्यक्त्वकी अवस्थित स्थिति नदीरणाका जघन्य अन्तर अन्तर्महूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक अठारह सागर है। स्त्रीवेदकी भुजगार और अवस्थित स्थितिजदीरणाका जवन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम पचवन पल्य है। अल्पतर स्थितिउदीरणाका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। इसीप्रकार भवनवासियोंसे लेकर सहस्त्रार कल्पतक जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि अपनी अपनी स्थिति कहनी चाहिए। हास्य-ति और अरनि-शोककी अल्पतर और प्रवक्तव्य स्थितिउदीरणाफा जघन्य अन्तर एक समय और अन्तर्मुहर्त है तथा उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहर्त है। सहस्रार कल्पमें हास्य रति तथा अति-शोककी अल्पतर और अवक्तव्य स्थिति उदीरणाका भंग सामान्य देवोंके समान है। इतनी विशेषता है कि भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिषी तथा सौधर्म और ऐशानकल्पमें स्त्रीवेदकी भुजगार और अवस्थित स्थितिउदीरणाका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम सीन पल्य, साधिक एक पल्य, साधिक एक पल्य और कुछ कम पचवन फ्ल्य है। अल्पतर स्थिति रदीरणाका जयन्य अन्तर पक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुबूत है। आगे स्त्रीवेदकी उदीरणा नहीं है। ६७३०. पानतकल्पसे लेकर नौ ग्रेवेयकतकके देवोंमें मिथ्यात्व, सम्यग्मिध्यात्व और अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी अल्पतर और अवक्तव्य स्थिति उदारणाका तथा सम्यक्त्वकी भुजगार, अल्पतर और प्रवक्तव्य स्थितिउदीरणाका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम अपनी अपनी स्थितिप्रमाण है। बारह कषाय और छह नोकपायको अल्पतर और
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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