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________________ गा० ६२] " उत्तरपडिविदिउतीरणाए भुजगारअणियोगद्दारं ३३१ " मार्गदर्शक :- आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज देमूणाणि । एवमरदि-मोग० । चरि अप्प० जह० एयस०, उक्क० अंतोमु० । एवं बारसक०-भय-दुगुंछा० । वरि अवत्त० जह० उक० अंतोमु० । एवं णव॒सः । गरि प्रवत्त० णस्थि ! सम्म० भुज०-अप-अबढि०-अवत्त० सम्मामि० अप्प०अवत्त० जह. अंतोमु०, उक्क० तेत्तीसं सागरो० देमूणाणि । एवं सत्तमाए । एवं पढमादि जाव छडि सि । णवरि सगहिदी देसूणा । णवरि हस्स-रदि. अप्प.. अवत्त • अरदि-सोग० अवत्त० जह• एगस० अंतोमु०, उक. अंतोमु० । ७२५. तिरिक्खेसु मिच्छ० भुज०-अवढि जह० एपस०, उक्क० पलिदो. असंखे०भागो। अप्प. जह० एगस०, उक्क तिरिण पलिदोवमाणि देसूपाणि । अवत्त. ओघं । एवमणताणु०४ । णवरि श्रवत्त० जह• अंतोमु०, उक्क० तिरिण पलिदो० देसूणाणि । एवमपञ्चक्खाण चउक्क० । णवरि अप्पद-अवत्त० जह० एगस० अंतोमु०, उक्क० पुषकोडी देसूणा । एवमट्टकसा०-छपणोक० । वरि अप्प०-अवत्ता इसीप्रकार अरति और शोककी अपेक्षा जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनकी अल्पतर स्थितिउदीरणाका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तमुहर्त है। इसीप्रकार बारह कषाय, भय और जुगुप्साकी अपेक्षा जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनकी प्रवक्तव्य स्थितिउदीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। इसीप्रकार नपुसकवेदकी अपेक्षा जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इसकी अबक्तव्य स्थिति उदीरणा नहीं है। सम्यक्त्वकी भुजगार, अल्पतर, अवस्थित और अवक्तव्य स्थिति उदीरणाका तथा सम्यग्मिध्यात्वकी अल्पसर और प्रवक्तव्य स्थिति उदीरणाका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तेतीस सागर है। इसीप्रकार सातवीं पृथिवीमें जानना चाहिए। इसीप्रकार प्रथम पृथित्रीसे लेकर छठी पृथिवीतक जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि कुछ कम अपनीअपनी स्थिति कहनी चाहिए। इतनी और विशेषता है कि हास्य और रतिकी अल्पतर और श्रवक्तव्य स्थितिउदीरणाका तथा अरति और शोककी अवक्तव्य स्थितिउदीरणाका जघन्य अन्तर एक समय और अन्तर्मुहूर्त है तथा उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। ६७२५. तिर्यञ्चोंमें मिथ्यात्वकी भुजगार और अवस्थित स्थिति उदारणाका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर पत्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। अल्पतर स्थितिउदीरणाका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तीन पल्य है। अवक्तव्यका भंग अोधके समान है। इसीप्रकार अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी अपेक्षा जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि अवक्तव्य स्थितिउदीरणाका जघन्य अन्तर अन्तमुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तीन पल्य है। इसीप्रकार अप्रत्याख्यानावरण चतुष्ककी अपेक्षा जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनकी अल्पतर और प्रवक्तव्य स्थितिउदीरणाका जघन्य अन्तर एक समय और अन्तर्मुहूर्त है तथा उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम एक पूर्वकोटिप्रमाण है। इसीप्रकार आठ कपाय और छह नोकपायकी अपेक्षा जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनकी अल्पतर और प्रवक्तव्य स्थिति उदीरयाका जघन्य अन्तर क्रमसे एक समय और अन्तर्मुहूर्त है तथा उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। इसोप्रकार नपुसकवेदकी अपेक्षा आनना चाहिए । इतनी
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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