SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 345
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३३५ जयधवलासहिदे कसायपाहुढे [ वेदगो मार्गदर्शक :- आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज जह. एगस० अंतोमु०, उक्क० अंतोमु० । एवं णचुस० । णवरि अप्प० जह० एयस०, उक. पुनकोडिपुधत्तं । अवत्त० ओघ । सम्म-सम्मामि०-इस्थिवे.-पुरिसवेद० सोधं । ७२६. पंचिदियतिरिक्वतिय० मिच्छ० भुज०-अववि० जह• एयसमो, उक्क० पुच्चकोडिपुधत्तं | अप्प० तिरिक्खोघं । अबत्त० जह• अंतीमु०, उक्क० सगद्विदी। एवमणंताणु०४ । णवरि अवत्त० तिरिक्खोघं । एवं बारसक-दण्णोक० । वरि अप्प०-अवत्ततिरिक्खोघं । सम्म० मज-अप्प०-अवत्त० सम्मामि० अ०-प्रवत्त. जह. अंतोमु०, उक्क. सगद्विदी देसूणा । सम्म० अवटि. जह• अंतोसु०, उक्क पुत्रकोडिपुधत्तं । तिरिणवेद० भुज. अप्प०-अवढि जह० एयस०, अवत्त० अंतोमु०, उक्क० पुग्यकोडिपुधत्तं । णवरि पजत्तासु इत्थिवेदो णस्थि । जोणिणोसु पुरिस.. णवुस० त्थि । इस्थिवे० अवत्त० णस्थि । अप्प० जह० एयस०, उक्क० अंतीमु० । ६७२७. पंचिंदियतिरिक्खअपज०-मणुसअपज्ज० मिच्छ०-णबुस० भुज.. अप्प-अबाहि० जह• एयस०, उक० अंतोमु० । एवं सोलसक०-छराणोक० । णवरि विशेषता है कि इसकी अल्पतर स्थितिउदीरणाका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर पूर्वकोटिपृथक्त्वप्रमाण है । अवक्तव्य स्थितिउदीरणाका भंग श्रोचके समान है । सम्यक्त्व, सम्यस्मिथ्यात्व, स्त्रीवेद और पुरुषवेदका भंग ओधके समान है। ७२६. पञ्छेन्द्रिय तिर्यश्चत्रिकमें मिथ्यात्वकी मुजगार और अवस्थित स्थितिउदीरणाका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर पूर्वकोदिपृथक्त्व प्रमाण हैं। अल्पतर स्थितिउदीरणाका भंग सामान्य तिर्यों के समान है। श्रवक्तव्य स्थितिउदीरगा।का जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर अपनी स्थितिप्रमाण है। इसीप्रकार अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी अपेक्षा जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि इनकी श्रवक्तव्य स्थिति उदारणाका भंग सामान्य तिर्यश्चोंके समान जानना चाहिए। इसीप्रकार बारह कपाय और छह नोकषायी अपेक्षा जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनकी अल्पतर और अवक्तव्य स्थितिउतीरणाका भंग सामान्य तियश्चोंके समान है। सम्यत्वी भुजगार, अल्पतर और श्रवक्तव्य स्थितिउदीरणाका तथा सम्यग्मिथ्यात्वकी अल्पतर और अवक्तव्य स्थिति दीरणाका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम अपनी स्थितिप्रमाण है। सम्यक्त्वकी अवस्थित स्थितिउदारणाका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहर्त है और उत्कृष्ट अन्तर पूर्वकोटिपृथक्त्वप्रमाण है। तीन वेदोंकी भुजगार, अल्पतर और अवस्थित स्थिति उदारणाका जयन्य अन्तर एक समय है और प्रवक्तव्य स्थितिउदीरणाका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहर्त है तथा उत्कृष्ट अन्तर पूर्वकोटिपृथक्त्वप्रमाण है। इतनी विशेषता है कि पर्याप्तकोमेस्त्रीवेदको उदीरणा नहीं है और योनिनियों में पुरुषवेद और नपुंसकवेदकी उदीरणा नहीं है। तथा इनमें स्त्रीवेदकी प्रवक्तव्य स्थितिउदीरणा नहीं है। तथा अल्पतर स्थिति उदीरणाका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। ७२७. पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्च अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्तकोंमें मिथ्यात्व और नपुसकवेदकी भुजगार, अल्पतर और अवस्थित स्थितिउदीरणाका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। इसीप्रकार सोलह कषाय और छह नोकषायकी अपेक्षा जानना
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy