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________________ ३२४ अयघवला सहिदे कसायपाहुडे [ वेदगो ७९ 1 , जह० एयस०, उक्क० सत्तारस समया । सम्म० भुज० अबडि० ० प्रवत्त० जह० उक० एगस० । अप्प० • विदिउदी ० ० जह० एस० उक० तेत्तीस सागरो० देसूरणाणि । सम्मामि० श्रघं । वुंम० ज० ड्डि दिउदी० जह० एस० उक० अट्ठारस समया । अप० जह० एगस०, उक्क० तेत्तीस सागरो० देसूणाणि । अवडि० जह० एयस०, उक्क अंतोमु० । एवं पदमाए । वरि सगट्टिदी | अरदि-सोग० अप्प० जह० एस०, उक० अंतीमु० । O ३ ७१६. बिदियादि सत्तमा चि मिच्छ० - सोलसक० दण्णोक० भुज० जह० एयसमत्रो, उक्क० बेसमया सत्तारस समया । अप्पद० अडि० श्रवत्त ० पढमाए गंगो । सम्म० ओघं । णवरि अप्पद० जह० अंतोमु०, उक० सगहिदी देखणा । सम्मा० श्रवं । णवुंस० भुज० डिदिउदी० जह० एयस०, उक्क० सत्तारस समया । अपद० जह० एस० उकदम कट्टिदी असून श्री सोच र मतमाए स्थितिउदीरणाका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल सत्रह समय है । सम्यक्त्वकी भुजगार अवस्थित और अवक्तव्य स्थितिउदीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । अल्पतर स्थितिउदीरणाका जघन्य काल एक समय है, और उत्कुट काल कुछ कम तेतीस सागर है । सम्यग्मिथ्यात्वका भंग ओघ के समान है। नपुंसकवेदकी भुजगार स्थितिउदीरणाका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अठारह समय है । अल्पतर स्थितिउदीरणाका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल कुछ कम तेतीस सागर है । अवस्थित स्थिति " उदीरणाका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । इसीप्रकार प्रथम पृथिवी में जानना चाहिए। इननी विशेषता है, कि अपनी स्थिति कहनी चाहिए। अरति और शोककी अल्पत्तर स्थितिउदीरणाका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । विशेषार्थ — एकेन्द्रिय जीव मरकर नरकमें नहीं उत्पन्न होता, इसलिए यहाँ मिध्यात्वकी भुजगार स्थितिउदीरणाके तीन समय और सोलह कपाय तथा अरति शोक और भयजुगुप्साकी भुजगार स्थितिउदीरणाके अठारह समय कहे हैं। मात्र भुजगार स्थितिउदीरणा के अठारह समय हास्य और रतिके नहीं प्राप्त होते, इसलिए इनकी अपेक्षा सत्र समय कहे हैं। शेष कथन सुगम है । ६७१६. दूसरी पृथिवी से लेकर सातवीं पृथिवीतकके नारकियोंमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय और छह नोकषायकी भुजगार स्थितिउदीरणाका जघन्य काल एक समय है धर उत्कृष्ट काल दो समय तथा सत्रह समय है । अल्पतर अवस्थित और अवक्तव्य स्थितिउदीरणाका भंग प्रथम पृथिवीके समान हैं। सम्यक्त्वका भंग श्रोघके समान है- इतनी विशेषता है कि अल्पतर स्थितिउदीरणाका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त हैं और उत्कृष्ट काल कुछ कम अपनी स्थितिप्रमाण है । सम्यग्मिध्यात्वका भंग ओघके समान है । नपुंसकवे दकी भुजगार स्थितिउदीरणाका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल सत्रह समय है । अल्पतर स्थितिउदीरणाका जघन्य काल एक समय हैं और उत्कृष्ट काल कुछ कम अपनी स्थितिप्रमाण है। अवस्थित स्थितिउदीरणाका भंग ओघ के समान है। इतनी विशेषता है कि वीं पृथिवी में 1
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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