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________________ गा० ६२] उत्तरपडिहिदिउदीरणाए भुजगारणियोगहार ३२५ अादि-सोग० अप्प० जह० एयम०, उक्क पलिदो. असंखे०भागो। ७१७. तिरिक्खेसु मिच्छ० अोघं । णवरि अप्प० जह• एयस०, उक्क० तिणि पलिदो० सादिरेयाणि । एवमित्थिवेद-पुरिसवेदाणं । सोलसक०-छण्णोक० प्रोघं । णवरि अरदि-सोग०-हस्स-रदि० अप्प० जह• एयस०, उक्क० अंतोमु० । सम्म० ओघ । वरि अप्प० जह० एयस०, उक० तिषिण पलिदो० देसूरणाणि । सम्मामि० ओघं । णम० अोघं । णवरि अप्प० जह• एगस०, उक्क० पलिदो० असंखेशक एवं अंजिनिअतिमिलिशाच जाहीरामस० अप्प० जह० एयस०, उक० पुच्चकोडि पुधत्तं । पजत्त० इत्यिवे० पत्थि | जोगिणीसु पुरिसवेद-णवुस० रणस्थि । इथिवे० अवत्तव्यं च पत्थि । सम्म० अप० जह० अंतोमु०, उक्क० तिषिण पलिदो० देसूणाणि । अरति और शोककी अल्पतर स्थिति उदीरणाका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। विशेषार्थ-द्वितीयादि नरकोंमें असंज्ञी जीव मरकर नहीं उत्पन्न होता, इसलिए इनमें मिथ्यात्वकी भुजगार स्थितिउदीरणाका उत्कृष्ट काल दो समय तथा सोलह कषाय और सात नोकषायोंकी भुजगार स्थितिउदीरणाका उत्कृष्ट पात सत्रह समय बचता है। परति और शोककी अल्पतर स्थिति उदारणाका उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण सातवें नरकम ही प्राप्त होता है। शेष कथन सुगम है। ८ ७१७. तिर्यनीमें मिथ्यात्वका भंग ओधके समान है। इतनी विशेषता है कि अल्पतर स्थिति उदीररणाका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल साधिक तीन पल्य है । इसीप्रकार स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी अपेक्षा जानना चाहिए। सोलह कषाय और छह नोकषायका भंग ओषके समान है। इतनी विशेषता हूं कि अरति-शोक तथा हास्य-तिकी अल्पतर स्थितिउदीरणाका जधन्य काल एक समय है और उस्कृष्ट काल अन्तर्मुहर्त है। सम्यक्त्वका भंग योधके समान है। इतनी विशेषता है कि इसकी अल्पतर स्थितिउदीरणाका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल कुछ कम तीन पल्य है। सम्यम्मिथ्यात्वका भंग ओषके समान है। नपुंसकवेदका भंग बोधके समान है। इतनी विशेषता है कि अल्पतर स्थितिउदीरणाका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। इसीप्रकार पञ्चेन्द्रियत्तिर्यश्चत्रिकमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनमें नपुसकवेदकी अल्पतर स्थितिउदीरणाका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पूर्वकोटिपृथक्त्वप्रमाण है। पर्याप्तकोंमें स्त्रीवेदकी उदीरणा नहीं है और योनिनियोंमें पुरुपवंद तथा नपुसकवेदकी उदीरणा नहीं है । योनिनियों में स्त्रीवेदकी प्रवक्तव्य स्थितिउदीरणा नहीं है। सम्यक्त्वकी अल्पतर स्थिति उदीरणाका जयन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल कुछ कम तीन पल्य है। विशेषार्थ-नपुसकवेदकी अल्पतर स्थिति उदीरणाका उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण सामान्य तियञ्चों ही बनता है। शेष कथन सुगम है। '-: ----
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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