SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 303
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २.६० जयधवला सहिदे कसायपाहुडे [ बेवगो ७ महाराज मिच्द्र० चदुसंज० - बुंस ० चदुणोक० जह० डिदिउ० सव्वजी० अांतभागो । अज० अनंता भागा | सम्म सम्मामि० इष्ठिरस के उच्चार के संभागो । अजह० श्रसंखेजा भागा । सव्वणेर० सव्वपंचि०तिरिक्ख० सव्त्र मणुम सचदेवा त्ति उकरसभंगो । ९६४९. तिरिक्खेसु मिच्छ० सय ० चदुणोक० जह० श्रांतभागो । अजह अरांता भागा । सम्म० सम्मामि० सोलसक० - इत्थिवेद - पुरिसवेद-भय- दुगु छा० जह० श्रसंखे० भागो । अजह० श्रसंखेजा भागा । एवं जाब० । 41 ६ ६५० परिमाणं दुविहं जह० उक्क० | उकस्से पयदं । दुविहो णिः श्रोषेण आदेसेण य । ओषेण मिच्छ०-सोलसक० सत्तणोक० उक्क० हिदिउदी० केतिया ? संखेजा । श्रणुक० केत्ति ० १ अरांता । सम्म० सम्मामि० - इत्थिवे ० - पुरिसवे० उक्क० अणुक्क० द्विदिउदी० ति० ? असंखेजा । - $ ६५१. सच्चरइय सव्वपंचिदियतिरिक्ख-मणुसअप ० देवादिदेवा भवणादि जाव सहस्सारे चि सच्चपघडी ० उक० अणुक० केचिया ? श्रसंखेज्जा । मणुसेसु चउस पगडीणं उक० द्विदिउदी० संखेज्जा । अणुक्क० केत्ति ० १ असंखेज्जा | मिथ्यात्व, चार संज्वलन, नपुंसकवेद और चार नोकषायकी जघन्य स्थितिके उरीरक जीव सब जीवोंके अनन्त भागप्रमाण है। अजघन्य स्थितिके उदीरक जीव अनन्त बहुभागप्रमाण हैं । सम्यक्त्व, सम्यग्मध्यात्य, स्त्रीवेद, पुरुषवेद, बारह कपाय, भय और जुगुप्साकी जघन्य स्थितिके उदीरक जीव श्रसंख्यातवें भागप्रमाण हैं। अजघन्य स्थितिके उदीरक जीव असंख्यात बहुभागप्रमाण हैं । सब नारकी, सब पञ्चेन्द्रिय तिर्यक्रच, सब मनुष्य और सब देवोंमें भंग उत्कृष्ट समान है । 1 १६४६ तिर्यञ्चों में मिध्यात्व, नपुंसकवेद और चार नोकषायकी जघन्य स्थिति के हीरक जीव अनन्त भागप्रमाण है। अजघन्य स्थितिके उदीरक जीव अनन्त बहुभागप्रमाण हैं । सम्यक्त्व, सम्यग्मिध्यात्व, सोलह कषाय, स्त्रीवेद, पुरुषवेद, भय और जुगुप्साकी जघन्य स्थितिके उदीरक जीव श्रसंख्यातवें भागप्रमाण हैं । अजघन्य स्थितिके उदीरक जीव असंख्यात बहुभागप्रमाण हैं । इसीप्रकार अनाहारक मार्गणातक जानना चाहिए । ६ ६५० परिमाण दो प्रकारका है - जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है । निर्देश दो प्रकारका है - घ और आदेश । श्रोघसे मिध्यात्व, सोलह कषाय और सात नोकषायकी उत्कृष्ट स्थिति उदीरक जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं । अनुत्कृष्ट स्थितिके उदीरक जीव कितने हैं ? अनन्त हैं । सम्यक्त्व, सम्यर्गमेध्यात्य, स्त्रीवेद और पुरुषवेद की उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिके उदीरक जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं । ६ ६५१. सब नारकी, सब पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च मनुष्य अपर्याप्त, देवगतिके देव और 1 भवनवासियोंसे लेकर सहस्रार फल्पतकके देवों में सब प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिके aatee जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। मनुष्यों में चौबीस प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थितिके उदीरक जोत्र संख्यात हैं । अनुत्कृष्ट स्थिति के उदीरक जीव कितने हैं ? असंख्यात है । सम्यक्त्व,
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy