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________________ -- - -- गा०६२] उत्तरपडिविविउदीरणाए भागाभागो २८९ णि.-ओघेण आदेसेण य । ओघेण चवीसाए पयडी० उकस्सविदिउदी० सव्वजी० केव ? अणतभागो । अणुक. अणता भागा । सम्म०-सम्मामि०-इथिव-पुरिसके. उक्क० द्विदिउदी० सब्बी० केव० ? असंखे०भागो | अणुक० द्विदिउदी असंखेजा भागा । एवं तिरिक्खा० । .६४६. सधणेरड्य-सव्यपंचितिरिक्ख-मणुस अपज०-देवगदिदेवा भवणादि जाव अवराजिदा ति सबषयः उक० विदिउदी० मन्यजी. केव० ? असंखे०. भागो । अणुक० असंखेजा भागा । ६४७. मणुसेसु चउवीसपय० उक्क० द्विदिउ० असंखे० भागो। अणुक ०द्विदिउदी. असंखेजा भागा। सम्म०-सम्मामि०-इस्थिवेद-पुरिसवेद० उक० द्विदिउदी. संखे०भागो । अणुक० संखेजा भागा। एवं मणुसपनः । गवरि संखेनं कायछ । इस्थिवेदो णस्थि माविक मणुसिणी मी सांपरिणदुरिसके पगबुंत णस्थि । सबढे वीसं पय० उक्त द्विदिउदी० संखे० भागो । अणुक० मंखेजा भागा । एवं जाव। १६४८, जहण्णए पयदं । दुविहो णि०-ओघेण आदेसेण य । श्रोधेण निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश। ओघसे चौबीस प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थितिके उदीरक जीव सब जीवों के कितने भागप्रमाण हैं ? अनन्तवें भागप्रमाण हैं। अनुस्कृष्ट स्थिति के 'उदीरक जीव अनन्त बहुभागप्रमाण हैं। सम्यक्त्व, सम्यग्मिध्यात्व, स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी उत्कृष्ट स्थितिके पदीरक जीव सब जीवोंके कितने भागप्रमाण हैं ? असंख्यात भागप्रमाण हैं। अनुत्कृष्ट स्थितिके उदीरक जीव असंख्यात बहुभागप्रमाण हैं। इसीप्रकार तिर्यञ्चों में जानना चाहिए। ६४६. सब नारकी, सब पञ्चेन्द्रिय तिर्यकच, मनुष्य अपर्याप्त, देवगतिके देव और भवनवासियोंसे लेकर अपराजित कल्पतकके देश में सब प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थितिके उदीरक जीव सब जीवोंके कितने भागप्रमाण हैं ? असंख्यानवें भागप्रमाण हैं 1 अनुत्कृष्ट स्थितिके उदीरक जीव असंख्यात बहुभागप्रमाण हैं । ६४७, मनुष्योंमें चौवीस प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थितिके उद्दीरक जीव असंख्यातवें भागप्रमाण हैं । अनुस्कृष्ट स्थितिके उदीरक जीव असंख्यात बहुभागप्रमाण हैं। सम्यक्त्व, सम्यग्मिध्यात्व, स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी उत्कृष्ट स्थिति के उदोरक जीव संख्यासवें भागप्रमाण हैं। मनुस्कृष्ट स्थितिके उदीरक जीव संख्यात बहुभागप्रमाण है। इसीप्रकार मनुष्य पर्याप्तकॉमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि असंख्यातके स्थानमें संख्यात करना चाहिए। इनके स्त्रीवेदकी उदीरणा नहीं है। इसीप्रकार मनुष्यनियों में जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि इनमें पुरुषवेद और स्त्रीवेदकी उदीरणा नहीं है। सर्वार्थसिद्धि में बीस प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थिनिके जदीरक जीव संख्यातवें भागप्रमाण हैं तथा अनुत्कृष्ट स्थिलिके उदीरक जीव संख्यात बहुभागप्रमाण हैं । इसीप्रकार अनाहारक मार्गणातक जानना चाहिए । 5६४८. जघन्यका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है-मोघ और आदेश। ओघसे
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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