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________________ अथधवला बहिदे कसायपाहुडे २८८ सत्तलोक एवगेवजभंगो । एवं जाव । ६ ६४२. णाणाजीवेहि भंगविचओ दुविहो जह० उक० | उकस्से पथदं । दोषेण सुमहीसागर एक दुविहो णि० - श्रोषेण आदेसे डिदिनदी० तिष्णि भंगा। सम्मामि० उक० अणुक्क० द्विदिउदी० भट्ट मंगा । सन्त्ररक्ष्य सव्यतिरिक्त सत्रामणुस - सच्चदेवा त्ति जाओ पडीओ उदीरिति तासिमोधं । raft मणुसअप चडवीसपय० उक्क० अणुक० हिदिउदी० अड्ड भंगा। एवं जाव० । $ ६४३. जहराए पयदं । दुविहों णि०- - ओवेण श्रादेसेण य । श्रघेण मिच्छ० सम्म० चदुसंजल० तिष्णिवे ० चदुणोक० जह० अजह० डिदिदी० तिष्णि भंगा। सम्मामि० ज० जह० विदिउदी० अट्ट भंगा। वारसक० -भय-दुर्गुछा जह० अजह० हिदिउदी० णिप० अस्थि । सव्त्ररहय-सव्त्रपंचिदियतिरिक्ख-सन्त्र मणुससच्चदेवा त्ति उक्करसभंगो । 01 [ वेदगो ― 9 ० ६ ६४४, तिरिक्खेमु सोलसक० भप दुर्गुबा० जह० जह० हिदिउदी० जिय० अस्थि । दंसणतिय सत्तरोक० श्रघं । एवं जाव० । | ६४५. भागाभागाणु० दुविहो- जह० उक० । उक्कस्से पयदं । दुविहो अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तक के देवोंमें सम्यक्त्व, बारह रूपाय और सात नोकषायका के समान है। इसीप्रकार अनाहारक मार्गणातक जानना चाहिए । I १६४२. नाना जीवों की अपेक्षा संगविचय दो प्रकारका है -- जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृटका प्रकरण है । निर्देश दो प्रकारका है - आंघ और आदेश । श्रोघसे सत्ताईस प्रकृतियों की पत्र और अनुत्कृष्ट स्थितियोंके उदीरक जीवोंके तीन भंग हैं । सम्यग्मिध्यात्वकी उत्कृष्ट और अनु स्थिति उदीर जीवोंके आठ भंग हैं। सब नारकी, सब तिर्यञ्च, सब मनुष्य और सब देव जिन प्रकृतियोंकी उदीरणा करते हैं उनका भंग श्रोध के समान है। इतनी विशेषता है कि मनुष्य अपर्याप्तकों में चौबीस प्रकृतियांकी उत्कृष्ट अनुत्कृष्ट स्थितिरकों के पाठ अंग हैं। इसीप्रकार अनाहारक मार्गातक जानना चाहिए। १६४३. जघन्यका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है- प्रोव और आदेश । श्रघसे मिध्यात्व, सम्यक्त्व, चार संज्वलन, तीन वेद और चार मोकषायके जघन्य और अजघन्य स्थितिके उदीरकों के तीन भंग हैं। सम्यग्मिध्यात्वकी जघन्य और अजघन्य स्थितिउदीरकों के आठ भंग हैं। बारह कपाय, भय और जुगुप्खाकी जघन्य और अजघन्य स्थितिके उदीरक जीव नियमसे हैं । सब नारकी, सब पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च, सब मनुष्य और सब देवोंमें उत्कृष्टके समान भंग है । $ ६४४. तिर्थोंमें सोलह कषाय, भय और जुगुप्साकी जघन्य और अजघन्य स्थिति उरक जीव नियमसे हैं। तीन दर्शनमोहनीय और सात नोकपायका भंग प्रोघके समान है। इसीप्रकार अनाहारक मार्गणातक जानना चाहिए । ६६४५, भागाभागानुगम दो प्रकारका है जघन्य और सस्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है ।
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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