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________________ गा० ६२) उत्तरपयडिहिदिउवारणाए एयजीषेण कालो २५१ अज० जह• एयसमयो । मणुसिणीसु पुरिसषेद०-णस० एत्थि । ६५४९. देवेसु मिच्छ० जह० द्विदिउदी. जह० उक्क० एयस० । अज. जह० अंतोमु०, उक. एकत्तीसं सागरोत्रमं । सम्प-पुरिसवे० जह• द्विदिउ० जह० उक्क० एयसः । अज० जह० एस०, पुरिसवे० अंतोमु०, उक्क० दोहं पि तेत्तीसं सागरो. वमं । सम्मामि०-सोलस कान्छण्णोक० पढमपुढविभंगो । णवरि हस्स-रदि० जह० हिदिउदी जहां उकठापिगममोजी राजह० एयस०, उक्क० छम्मास । इन्थिवे. जह द्विदिउदी. जह. उक० एगसः। अज० जह० अंतोमु०, उक्क. पणवएणं पलिदोषमं० । एवं भत्रण-घाणवें । णवरि सगद्विदी । सम्मत्त अज० जह, अंतोसु०, उक्क. सगहिदी देसूणा । इथिवे. अज० जह• अंतोमु०, उक्क० निणि पलिदो० पलिदो० सादिरेयाणि । हस्स-रदि० जह० द्विदिउदी० जह• उक० एयस० । अज० जह० एयसमओ, उक्क० अंतोमुहुर्त । माग तथा इनमें सम्यक्त्वकी अजघन्य स्थितिउदीरणाका जघन्य काल एक समय है। मनुष्यनियों में पुरुषवेद और नपुसकवेदकी उदीरणा नहीं है। विशेषार्थ--मनुष्यों में क्षायिक सम्यक्त्वकी उत्पत्ति उक्त तीनों प्रकारके मनुष्यों में हो सकती है। इसलिए क्षायिक सम्यक्त्वको उत्पन्न करनेवाली जो कृतकृत्यवेदक सम्यग्दृष्टि मनुध्यिनी मरकर उत्तम भोगभूमिमें उत्पन्न होती है वह भी मनुष्य पर्याप्तकोंमें ही उत्पन्न होती है। इसी बातको ध्यानमें रखकर यहाँ मनुष्य पयानको सम्यक्त्वकी अजघन्य स्थिति उदीरणाका जधन्य काल एक समय बन जानेसे वह तत्प्रमाण कहा है। शेष कथन सुगम है। ५४६. देवोंमें मिथ्यात्यकी जघन्य स्थितिउदीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अजघन्य स्थिनिउदीरणाका जघन्य काल अन्तमुहूर्त है और उत्कृष्ट काल इकतीस सागर है। सम्यक्त्त और पुरुपवेद की जघन्य स्थित्तिउदीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । अजघन्य स्थिति उदीरणाका जघन्य काल एक समय है, पुरुषवेदका अन्तमुहर्त है और दोनोंका उत्कृष्ट काल तेतीस सागर है। सम्यग्मिथ्यात्व, सोलह कषाय और छह नोकपायोंका भंग प्रथम पृथिवीके समान है। इसनी विशेषता है कि हास्य और रतिकी जघन्य स्थितिउदीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अजघन्य स्थिति उदीरणाका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल छह महीना है। स्त्रीवेदकी जघन्य स्थितिबदीरणका जधन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अजघन्य स्थितिउदीरणाका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल पचवन पल्य है। इसीप्रकार भवनवासी और व्यन्तरदेवों में जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि अपनी-अपनी स्थिति कहनी चाहिए। सम्यक्त्वकी अजघन्य स्थितिउदीरणाका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल कुछ कम अपनी-अपनी स्थिति प्रमाण है । स्त्रीवेदकी अजघन्य स्थितिउदीरणाका जघन्य काल अन्समुहते है और उत्कृष्ट काल क्रमसे तीन पल्य और साधिक एक पल्य है। हास्य-रतिकी जघन्य स्थितिउदीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अजघन्य स्थितिउदीरणाका अघन्य काल एक समय है, और उत्कृष्ट काल भन्तर्मुहत है।
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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