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________________ अयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ वेदगी ७ १५५०. जोदिसियादि जाव सहस्सार ति मिच्छ० जह० द्विदिउदी० जह० उक० एयस० । अज० जह० अंतोमुद्दत्तं उक० सगहिदी । सम्म० जह० हिदीउदी ० जह० उक्क० एयस० । अजह० जह० एस० उक सगडिदी । सम्मामि० पोलसक०कवि हिंदीउदी० जह० उक० एयस० । अज० जह० पत्रिदो० अनुभागो पलिदो० सादिरेयं उक्क० पलिदो० सादिरेयं पणवणं पलिदोवमाणि । पुरिसवे० जह० डिदिउदी० जह० एस० । अजं० जहष्णुक० जहष्णुकस्सदि । वरि जोदिसि० सम्म० अ० जह० अंतोमु०, उक्क० पलिदो० सादिरेयं । सहस्सारे इस्स-रदि श्रोषं आमदादि बगेवजा नि सणकुमारभंगो ! वरि सगहिदी । अताणु०४ जह० द्विदिउदी० जह० उक० एयसमत्रो । अज० f २५२ विशेषार्थ – सामान्यकी अपेक्षा देवों में भी कृतकृत्यवेदक सम्यक्त्वकी अपेक्षा सम्यक्त्वक अन्य स्थितिउदीररणाका जघन्य काल एक समय बन जानेसे यह काल तव्यमाण कहा है । किन्तु भवनत्रिक में सम्यग्दृष्टि जीव मरकर नहीं उत्पन्न होते, इसलिए इनमें सम्यक्त्वकी अजघन्य स्थितिउदीरणाका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त से कम नहीं प्राप्त होनेसे यह अन्तर्मुहूर्त कहा है । पुरुषवेद और स्त्रीवेदकी जवन्य स्थितिउदीरगा जो हतसमुत्पत्तिक असंज्ञी जीव मरकर देवों में उत्पन्न होता है उसके उत्पन्न होने के अन्तर्मुहूर्त होनेपर होती है, इसलिए सामान्य देवोंमें पुरुषवेद और स्त्रीवेदक अजघन्य स्थितिउदीरणा का जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त कहा है। इसीप्रकार स्वामित्व और भवस्थिति आदिको जानकर अन्य सब प्रकृतियोंकी जघन्य और अजघन्य स्थितिउदीरणाका काल घटित कर लेना चाहिए । १५४०. ज्योतिषी देवोंसे लेकर सहस्रार कल्पतकके देवोंमें मिध्यात्व की जघन्य स्थितिउदीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अजघन्य स्थितिउदीर का जवन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल अपनी-अपनी स्थितिप्रमाण है। सम्यक्त्वकी जघन्य स्थितिउदीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । अजघन्य स्थितिउदीरणाका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अपनी-अपनी स्थितिप्रमाण हैं । सम्यग्मिथ्यात्व, सोलह कमाय और छह नोकषायका भंग दूसरी पृथिवीके समान है। स्त्रीवेदकी जघन्य स्थितिउदीरणाकर जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । अजघभ्य स्थितिउदीरणा का जघन्य काल ज्योतिषियों में एकपत्यका भाठवाँ भागप्रमाण और सौधर्म- पेशान कल्प में साधिक एक पत्यप्रमाण है तथा उत्कृष्ट काल ज्योतिषियों में साधिक एक पल्यप्रमाण और सौधर्म- ऐशानकल्प में पचवन पल्यप्रमाण है । पुरुषवेदकी जघन्य स्थितिउदीरणाका जघन्य काल एक समय है । श्रजघन्य स्थितिउदीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट काल अपनी-अपनी जघन्य और उत्कृष्ट स्थितिप्रमाण है । इतनी विशेषता है कि ज्योतिषियों में सम्यक्त्वकी जघन्य स्थितिउदीरणाका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल साधिक एक पल्य हैं । सहस्रार कल्पमें हास्य और रविका भंग ओके समान है । नत कल्पसे लेकर नी मैवेयक तक के देवोंमें सनत्कुमारकल्प के समान भंग है | इतनी विशेषता है कि अपनी-अपनी स्थिति कहनी चाहिए। अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी जघन्य स्थितिउदीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अजघन्य स्थितिउदीरणाका 1. यामी एस० ० इति पाठः । 1 -
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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