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________________ २५० जयश्ववासहिदे कसायपाहुडे [ बेगो ७ , सम्माभि० तिरिक्खोघं । सोलसक० रोक० जह० डिदिउदी० जह० उक० एस० । अज० जह० एस० उक० अंतो० । शत्रु स० जह० ट्ठिदिउदी० जह० उक्क० एयस० । अज० जह० अंतोमुहुतं, उक्क० पुन्त्रको डिप्रधत्तं । णवरि पञ्ज० इथिवे० खत्थि । जोणिणीसु पुरिसवे ० स० णत्थि । जोणिणी० सम्म० भज० जह० अंतोमु० । ५४७. पंचि०तिरिक्खअपज० मणुस अपज० मिच्छ० जह० डिदिउदी० जह० उक० एस० । अज० जह० चवलिया समघृणा, उक० अंतोमु० । सोलसक०दोक० जह० डिदिउदी० जह० उक० एयस० । श्रज० जह० एयस०, उक्क० अंतोमुहूतं । स० जह० द्विदिउदी० जह० उक० एयस० । अज० जह० उक० ★तोमु० । ५४८. मनुसतिय० पंचिदियतिरिक्खभंगो । णवरि सम्म० श्रज० जह० अंतोमु । तिष्णिषेक जाचार्य सा सुविधिसागर पञ० इत्थिवेदी णत्थि । सम्म० ० स्थितिउदीरणाका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल मिथ्यात्व आदि तीनोंका ही अपनी-अपनी स्थितिप्रमाण है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिध्यात्वका भंग सामान्य तिर्यखों के समान है | सोलह कषाय और छह नोकषायोंकी जघन्य स्थितिउदीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अजघन्य स्थितिउदीरणाका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। नपुंसक वेद की जघन्य स्थितिउदीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट का एक समय है । अजघन्य स्थितिउदीरणाका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल पूर्वकोटिप्रथस्त्त्रप्रमाण है । इतनी विशेषता है कि पंचेन्द्रिय निर्यश्व पर्यातकोंमें स्त्रीकी रण नहीं है तथा योनिनियों में पुरुषवेद और नपुंसकवेदकी उदीरणा नहीं है। तथा योनिनी तिर्यश्चों में सम्यक्त्वकी भजघन्य स्थितिउदीरणाका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है । विशेषार्थ - कृतकृत्यवेदक सम्यग्ट्रष्टि मनुष्य मरकर योनिनीतियोंमें नहीं उत्पन्न होते, अतः इनमें सम्यक्त्वकी जघन्य स्थितिउदीरणाका जघन्य काल एक समय न बन सकने के कारण वह अन्तर्मुहूर्त कहा है जो वेदकसम्यक्त्वकी अपेक्षा बन जाता है। ६५४७ पञ्चेन्द्रिय तिर्यंच अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्तकों में मिध्यात्वकी जघन्य स्थितिउदीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अजघन्य स्थितिउदीरणाका जघन्य काल एक समय कम एक आवलि है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। सोलह कषाय और छड् नोकषायकी जघन्य स्थितिउदीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । अजधन्य स्थितिउदीरणाका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त ६ । नपुंसक वेद की जघन्य स्थितिउदीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अजघन्य स्थिति उदीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । ५४८. मनुष्यत्रिमें पंचेन्द्रिय तिर्यचांके समान भङ्ग है। इतनी विशेषता है कि इनमें सम्यक्त्वकी अजघन्य स्थितिउदारणका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त ६ । तानों वेदोंकी अजघन्य स्थितिउदीरणा का जघन्य काल एक समय है । मनुष्य पर्याप्तकों में स्त्रीवेदकी उदीरणा नहीं है । 3
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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