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________________ .. .. .. . .. u u u u .. .. . . .. .. .... ...., गा० ६२] उत्तरपयधिष्टिविउदारणाए एय जीवेण कालो तेतीसं माग० देसूपाणि । सोलसक०-भय-दुगुंछ० जह. अजह. विदिउदी० जह यस, उक० अंतोमु । ५४५, तिरिक्खेसु मिच्छ ०-णघुस जह, हिदिउदी० जह० उक० एयस० । अज० जह. खुद्दाभव०, उक्क० अणंतकालमसंखे०पोग्गलपरियट्टा । सम्म० जह० हिदिउदी० जह• उक्क० एयस० । अज० जह. एयस०, उक्क० तिपिण पलिदो. देसणाणि । सम्मामि०-सोलसक०-भय-दुगुंछाणं सत्तमपुढविभंगो । इत्यिवे०-पुरिसवे. जह० द्विदिउदीयाक उकाशयम सावजाग जाग्रतामु० पलिदो पुवकोडिपुत्तेणब्भहियाणि । हस्स-रदि-अरदि-सोग. जह० टिदिउदी० जह. उक्क० एयस० । अज० जह० एयस०, उक० अंतोमु० । १५४६. पंचिंदियतिरिक्खतिय० मिच्छ० जह० द्विदिउदी० जह• उक्क० एयस०, अज० जह० खुद्दाभव. अंतोमु०, इत्थिवेद-पुरिसवे. जह० द्विदिउदी० जह• उक्क० एयस०, अज० जह० अंतोमु०, उक्क० तिराई पि सगहिदी । सम्म०जधन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । अजघन्य स्थिति उदीरणाका जयन्य काल अन्तर्मुहर्त और उत्कृष्ट काल कुछ कम तेतीस सागर है। सोलह कषाय, भय और जुगुप्साकी जघन्य और अजघन्य स्थितिचीरणाका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। विशेषार्थ यहाँ सोलह फषाय, भय और जुगुप्साकी जघन्य और अजघन्य स्थितिउदीरणाके जघन्य और उत्कृष्ट कालका खुलासा ओघको ध्यान में रखकर लेना चाहिए। ६५४५, तिर्थञ्चोंमें मिथ्यात्व और नपुसकवेदकी जन्य स्थितिउदारणाका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । अजधन्य स्थिति उदीरणका जघन्य काल हुल्लक भवग्रहणप्रमाण है और उत्कृष्ट काल अनन्तकाल है जो असंख्यात पुद्गलपरिवर्तनप्रमाण है। सम्यक्त्वको जघन्य स्थितिउदीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अजघन्य स्थितिउदीरणाका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल कुछ कम तीन पल्यप्रमाण है। सम्यग्मिथ्यात्व, सोलह कषाय, भय और जुगुप्साका भंग सातवीं पृथिवी के समान है। स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी जघन्य स्थितिउदीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अजघन्य स्थिति उदारणाका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल पूर्वकाटिपृथक्त्व अधिक तीन पल्य है। हास्य, रति, अरनि और शोकको जघन्य स्थितिउदारणाका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अजघन्य स्थितिउदीरणाका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। विशेपार्थतियों में कुत्यकृत्यवेदक सम्यग्दृष्टि जीव भी मरकर उत्पन्न होते हैं, इसलिए इनमें सम्यक्त्वकी अजघन्य स्थिति उदीरणाका जघन्य काल एक समय बन जाता है। इसीप्रकार सामान्यसे नारकियों में और प्रथम पृथिवीमें भी जान लेना चाहिए। आगे भी यह विशेषता यथायोग्य समझ लेनी चाहिए। ५४६. पञ्चेन्द्रिय तिर्यचत्रिकर्म मिध्यात्वकी जघन्य स्थिति उदीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है, अजघन्य स्थिनिउदीरणाका जघन्य काल सामान्य पंचेन्द्रिय सियों में सुरक्षा भवप्राणप्रमाण और शेष घोमें अन्तमुहर्स है, स्त्रीवेद और और पुरुषवेदकी जघन्य स्थितिउदारणाका जघन्य और उत्कृष्ट काल एफ समय है, अजघन्य ३२
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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