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________________ मार्गदेशेकवलासमवायसायाहवे। विधिसागर जी महाराज [ वेदगो ७ ६५४१. जह० पदं । दुबिहो णि० ओघेण आदेसेण य । श्रोषेण मिच्छ० जह० डिदिउदी० जह० उक्क० एयस० । अज० तिष्णि भंगा । तत्थ जो सो सादिश्रो सपज्जवसिदो तस्स जह० अंतोसु०, उक्क० श्रद्धपोग्गलपरियहं देखणं । सम्म० जह० डिदिउदी ● जहण्णु० एयस० । अज० जह० अंतो० उक० छावट्टिसागरोवमाणि देणाणि । सम्मामि० जह० डिदिउदी० जह० उक्क० एयस० । श्रज६० जह० उक० अंतोनु० [० | बारसक० -भय-दुर्गुछ० जह० अज० हिंदिउदी० जह० एयसमयो, उक० ० , तोमु० । चदुसंज० जह० हिदिउदी० जह० उक० एयस० । अज० जह० एस ०, उक्क० अंतोमुडुतं । इस्थिवे ० पुरिसवे० स० जह० डिदिउदी० जह० उक० एयस० । अज० जह० एयस०, पुरिसवे० अंतो० । उक्क० पलिदोव मसदपुधत्तं सागरोत्रमसदपुधसं अांतकालमसंखे० पोग्गल परियहं । इस्स नदि० जह० डिदिउदी ० जह० उक्क० एस० । श्रज० जह० एयस०, उक० धम्मासं । अरदि-सोग० जह० जह० उक० एयसमत्रो । अज० जह० एयस०, उक्क० तेचीसं सागरो० सादिरेयाणि । २४६ ९५४१. जघन्यक्का प्रकरण है । निर्देश दो प्रकारका है -- ओघ और आदेश । श्रोषसे मिध्यात्वकी जघन्य स्थितिउदीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । अजघन्य स्थितिउदीरणा के तीन भंग है। उनमें से जो सादि- सपर्यति भंग है उसका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त हैं और उत्कृष्ट काल कुछ कम अर्धपुलपरिवर्तनप्रमाण है। सम्यक्त्वा जघन्य स्थितिउदीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अजघन्य स्थितिउदीरणा का जधन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल कुछ कम छयासठ सागर है । सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिउदीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । अजघन्य स्थितिउदीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्व है। बारह कषाय, भय और जुगुप्साकी जवन्य और अजघन्य स्थितिउदीरणाका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। चार संज्वलन की जघन्य स्थितिउदीरणका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । अजघन्य स्थितिउदीरणाका जवन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त हैं । स्त्रीवेद, पुरुषवेद और नपुंसक. बेदी जघन्य स्थितिउदीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । अजघन्य स्थितिउदीरणाका अन्य काल एक समय है, पुरुषवेदका अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल क्रमसे सौ पृथक्त्व, सौ सागरपृथक्त्व तथा असंख्यात पुदल परिवर्तनप्रमाण अनन्त काल है | हास्य और रतिकी जघन्य स्थितिउदीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । श्रजघन्य स्थितिउदीरणाका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल छह महीना है। रति और शोककी जघन्य स्थिति उदीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । अजयन्य स्थितिउदीरणा का जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल साधिक तेतीस सागर हैं। विशेषार्थ — जो मिध्यादृष्टि जीव उपशमसम्यक्त्व के अभिमुख हो एक समय अधिक एक अवलिप्रमाण प्रथम स्थितिके रहनेपर उपरितन एक स्थितिकी उदीरणा करता है उसके मिध्यात्वकी जघन्य स्थितिउदीरणा मात्र एक समय तक प्राप्त होनेके कारण इसका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय कहा है। इसकी अन्य स्थितिउदीरणाके तीन संग प्राप्त होते हैंअनादि-अनन्त, अनादि सान्त और सादि- सान्त | उनमें से खादि- सान्त भंगका जो जघन्य और
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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