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________________ गा० ६२] उतरफ्यविद्विदिखदीरणाए एयजीवेण कालो २४७ ५४२. आदेसेण णेरड्य० मिच्छणस०-अरदि-मोग० जह० विदिउदी० जह उक • एयस० | अज० जह० अंतोमु०, अरदि-सोगे० जह• एयसमो , उक्क. तेत्तीसंदर्यामशेषमाणिव सम्मतिमिहामर ट्रिदिखाडामह० उक० एयस० । अज० जह० एयसमओ, उक्क० तेत्तीसं सागरो० देसूणाणि । सम्मामि० ओघं । सोलसक०-हस्सरदि-भय-दुगुंछा. जह• द्विदिउदी. जह० उक्क० एयसमझो। अज० जह० एयस०, उत्कृष्ट काल मूलमें बतलाया है वह सुगम है, क्योंकि जो सम्यग्दृष्टि जीव मिथ्यात्व में जाकर अन्तमुहूर्त कालतक मिथ्याष्ट्रि बना रहकर पुनः सम्यग्दृष्टि हो जाता है उसके मिथ्यात्वकी अजघन्य स्थितिउदीरणाका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त प्राप्त होता है और जो अर्धपुद्गलपरिवर्तनप्रमाण काल के शेष रहने पर सम्यग्दृष्टि होकर पुनः अन्तर्मुहूर्तमें मिथ्यादृष्टि हो जाता है और मुक्ति लाभ करनेके कुछ काल पूर्व सम्यग्दृष्टि होता है उसके मिथ्यात्वकी अजघन्य स्थितिउदीरणाका उत्कृष्ट काल कुछ कम अर्धपुद्गलपरिवर्तनप्रमाण प्राप्त होता है। सम्यक्त्वकी जघन्य स्थितिउदीरणा अपने स्वामित्वके अनुसार क्षायिक सम्यक्त्वको प्राप्त करते समय एक समय अधिक एक श्रावलिप्रमाण स्थितिके शेष रहनेपर एक समय तक उपरितन स्थितिकी होती है, इसलिए इसका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय कहा है। तथा वेदकसम्यस्त्वक जघन्य और उत्कृष्ट कालको ध्यानमें रखकर इसकी अजघन्य स्थिति उदीरणाका जघन्य काल अन्तर्मुहर्त और उत्कृष्ट काल कुछ कम छयासठ सागर कहा है। अपने स्वामित्वके अनुसार सम्यग्मि. भयावक्री जघन्य स्थिति उदीरणा सम्यग्मिथ्यात्व गुणस्थानके अन्तिम समयमें प्राप्त होती है, इसलिए इसका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय कहा है। तथा इस गुणस्थानके जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहर्तको ध्यानमें रखकर इसकी अजधन्य स्थितिउदीरणाका जघन्य और उस्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त कहा है। बारह कषाय, भय और जुगुप्साकी जघन्य स्थिति उदारणाका जो स्वामित्व बतलाया है उस ध्यानमें रखकर इनकी जघन्य स्थितिउदारणाका जघन्य और उत्कृष्ट काल घटित कर लेना चाहिए । अजघन्य स्थिति उदीरणाका काल सुगम है। कालका निर्देश मूलमें किया ही है। चार संज्वलनोंकी जघन्य स्थिति दोनों श्रेणियों में विवक्षित कषायसे चढ़े हुए जीवके एक समयतक होनी है, इसलिए इनकी जघन्य स्थितिउदीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय कहा है। इनकी अजघन्य स्थितिउदीरणाका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है यह स्पष्ट ही है। इसीप्रकार आगे भी स्वामित्वका विचारकर काल घटित कर लेना चाहिए । सुगम होनेसे पृथक पृथक स्पष्टीकरण नहीं किया। यही बात गतिमार्गणाके सब उत्तर भेदोंमें जाननी चाहिए । जहाँ कुछ विशेषता होगी उसका स्पष्टीकरण अलगसे करेंगे। ६५४२. श्रादेशसे नारकियों में मिथ्यात्व, नपुसकवेद, अरति और शोककी जघन्य स्थितिउनीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट काल पक समय है। अजघन्य स्थिति उतीरणाका मिथ्यात्व और नपुसकवेदकी अपेक्षा जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त, भरति और शोककी अपेक्षा जघन्य काल एक समय तथा सबका उत्कृष्ट काल तेतीस सागर है । सम्यत्वको जघन्य स्थितिउदीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अजघन्य स्थिति उदीरणाका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल कुछ कम तेतीस सागर है। सभ्यग्मिध्यात्वका भंग प्रोधके समान है । सोलह कषाय. हास्य, रति, भय और जुगुप्साकी जघन्य स्थिति उदीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट 1. ता०प्रसौ अंतोमु.। .."अरदि-सोग इति पाठः ।
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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