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________________ गा०६२] उत्तरपछिडिदिउदीरणांए एयजीवेण कालो २४५ तिष्णि पलिदोवमाणि पलिदोवमसादिरेयाणि पलिदोवमसादिरे । सोहम्मीसाणे इत्थिवेद ० देवोघं । उवरि इस्थिवे० णस्थि । ५३९, आणदादि गवगेवजा ति मिच्छ० उक० द्विदिउदी. जह• उक्क० एयस० । अणु० जह० अंतोमु०, उक० समट्टिदी । सम्म० उक० द्विदिउदी० जहण्णु० एयस० । अणुक० जह• एयसमओ, उक० सगट्टिदी | सम्मामि० ओघ । सोलसक०छण्णोक० उक० द्विदिउदी० जपणुक० एयस० । अणुक० जह• एयस०, उक० अंतोमु०। पुरिमवेद० उक० द्विदिलदी० जहण्णुक एयस० | अणुक० जहएणुक०द्विदी। मार्गदर्शक :- आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज ६५४०. अणुदिसादि सव्वट्ठा त्ति सम्म० उक० द्विदिउदी० जह० उक्क. एयस० । अणुक० जह० एयस०, उक्क • मगदिदी । बारसक०-छराणोक उक्क० हिदिउदी० जह० उक्क० एयस० । अणुक० जह• एयस०, उक्क ० अंतोमु । पुरिसवे. उक० टिदिउदी० जहण्णुक० एयस० | आणुक० जहण्णुक • जहएणुकस्सहिदी । एवं जाव०। है और उत्कृष्ट काल क्रमसे तीन पत्य, साधिक एक पल्य और साधिक एक पल्य है। सौधर्म और ऐशानकल्पमें स्त्री वेदका भंग सामान्य देवोंके समान है। शागे स्त्रीवेदकी उदारणा नहीं है। ३५३६. अानतकल्पसे लेकर नौ प्रवेयकतकके देवामें मिथ्यात्वी उत्कृष्ट स्थिति उदारणाका जघन्ग और उत्कृष्ट काल एक समय है। अनुत्कृष्ट स्थिति उदीरणाका जघन्य काल अन्तमुहूर्त है और उत्कृष्ट काल अपनी-अपनी स्थितिप्रमाण है। सम्यक्त्वकी उत्कृप स्थिविउदोरणाका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अनुत्कृष्ट स्थितिउदीरणाका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अपनी-अपनी स्थितिप्रमाण है। सम्यग्मध्यात्वका भंग आपके समान है। सोलह कपाय और छह नोकषायोंकी उत्कृष्ट स्थितिउदीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । अनुत्कृष्ट स्थितिउदीरणाका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। पुरुषवेदकी उत्कृष्ट स्थितिउदीर गणाका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । अनुत्कृष्ट स्थिति उदीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट काल अपनी-अपनी जघन्य और उत्कृष्ट स्थितिप्रशारण है। ६५४८, अनुदिशसं लेकर सर्वार्थसिद्धितकके देवोंमें सम्यक्त्वका उत्कृष्ट स्थितिउदीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अनुत्कृष्ट स्थितिउदीरणाका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अपनी-अपनी स्थितिप्रमाण है। बारह फषाय और छह नोकषायोंकी उत्कृष्ट स्थिति दीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अनुत्कृष्ट स्थिति उदारपाका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त है। पुरुपवेदकी उत्कृष्ट स्थितिउदीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अनुत्कृष्ट स्थितिरदारणाका जघन्य और उत्कृष्ट काल अपनी-अपनी जघन्य और उत्कृष्ट स्थितिप्रमाण है। इसीप्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए ।
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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