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________________ जयधवलास हिदे कसायपाहुडे [ वेदगो ७ १५३७. पंचिं० तिरि०पत्र० मणुस श्रपञ० मिच्छ० स०] उक्क० जहष्णुक ० एयस० | श्रणुक० जह० खुद्दाभव० समऊणं, उक्क० अंतोमु० । सोलसक० छण्णोक० उक्क० हिदिउदी० जह० उक्क० एयस० । अणुक्क० जह० एयस०, उक० अंतो० । माणुसतिए पंचिदियतिरिक्वतियभंगो । २४४ ६५३८. देवेसु मिच्छ० उक्क० डिदिउदी० जह० एस० उक० अंतोमु० । अणुक० जह० एयस०, उक्क० एकतीस सागरो० । सम्म० उक० डिदिउदी० जह० उक्क० एस० । अणुक० जह० एयस०, उक्क० तेतीसं सागरोवमाणि । सम्मामि०सोलसक० - अरदि-सोग-भय-दुर्गुछा० पढमपुढविभंगो इस्थिवे० उक० जह० एयस०, उक्क० आवलिया | अणुक्क० जह० एयस०, उक्क० पणवरणपलिदो० । पुरिसवेद० उक० ओषं । अणुक्क० जह० एयस०, उक्क० तेत्तीस सागरो० । हस्स-रदि० उक्क भ हिदिउदी० श्रोषं । अणुक० जह० एयसमत्र, उक्क० छम्मासा | एवं भवणादि जात्र सहस्सार त्ति | णवरि सगहिदी । हस्स~रदि० णारयभंगो । सहस्सारे हस्स -रदि० ओधं । भवण० त्राण जोदिसि० इस्थिवे० उक्क० श्रोधं । शुक० जह० एयस०, उक १५३७. पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च श्रपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्तकों में मिध्यात्व और नपुंसक बेकी उत्कृष्ट स्थितिउदीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अनुत्कृष्ट स्थितिउदीरणाका जघन्य काल एक समय कम समयमा श्रीमहाराज श्रन्तर्मुहूर्त है | सोलह कषाय और छह नोकपायोंकी उत्कृष्ट स्थितिउदीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । अनुत्कृष्ट स्थितिउदीरणाका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। मनुष्यत्रिक पश्चेन्द्रिय तिर्यश्वत्रिक के समान भंग हूँ । I ६५३८. देवोंमें मिथ्यात्व की उत्कृष्ट स्थितिउदीरणाका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त हैं । अनुत्कृष्ट स्थितिउदीरणाका जयन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल इकतीस सागर है । सम्यक्त्वकी उत्कृष्ट स्थितिउदीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । अनुत्कृष्ट स्थित उदीरणाका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल तेतीस खागर है । सम्यग्मिध्यात्व, सोलह कपाय, रति, शोक, भय और जुगुप्साका भंग प्रथम पृथिवीके समान है। स्त्रीवेदी उत्कष्ट स्थितिउदीरणाका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल एक श्रवलि है । अनुत्कृष्ट स्थिति उद्धरणका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पचवन पल्य हैं । पुरुषवेदकी उत्कृष्ट स्थितिउदीरणाका भंग के समान है । अनुत्कृष्ट स्थितिउदीरणाका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल तीस सागर है । हास्य और रविकी उत्कृष्ट स्थितिदीरणाका भंग योधके समान है । अनुत्कृष्ट स्थितिउदीरणाका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल छह महीना है । इसीप्रकार भवनवासियों से लेकर सहस्रार कल्पतक जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि अपनी-अपनी स्थिति कहनी चाहिए। तथा इनमें हास्य और रतिका भंग नारकियोंके समान है। सहस्रारमें हास्य और रतिका भंग के समान है । भवनवासी, व्यन्तर और ज्योतिपी देवामें स्त्रीवेदक उत्कृष्ट स्थितिउदीरणाका भंग श्रधके समान हैं । अनुत्कृष्ट स्थितिउदीरणाका जघन्य काल एक समय
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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