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________________ २३० अयधवलास हिदे कसायपाहुडे [ वेदगो ७ मणुसतिए असंखे० गुणवड्डि-हाणि अवत्त० लोग० असंखे ० भागो । एवं जाव० | - १५१३. कालानु० दुविहो णि० - श्रोण देसेण य । श्रघेण असंखे०भागत्रडि हाणि श्रवडि० सव्वद्धा । दोवडि- हाणि० जह० एयस०, उक्क० आबलि० असंखे० भागो । असंखे० गुणवड्डि- हाणि अवत० जह० एयस० उक० संखेआ समया । मणुसतिए असंखे० गुणवड्डि-हाणि प्रयत० जह० एगसमओ, उक० संखे० समया । सेमपदा से समग्गणाओ च विहत्तिभंगो | एवं जाव० । " $ ५१४. अंतरा० दुविहो णि० - ओघेण मदेसे० । श्रघेण विहसिभंगो । वर असंखे० गुणवड अवत० जह० एयस० उक० वास धत्तं । मणुसतिए वित्तिभंगो सरह एस० उ० वासपुधतं । सेसगइसुविधिसागर जी महाराज मग्गणासु वित्तिभंगो । एवं जाव० । 1 : ५१५. भावाणु० सव्त्रत्थ मोदओ भावो । $ ५१६. अप्पाच हुआ णु० दुविहो खि० - ओषेण आदेसे० । श्रघेण सव्वत्थो ० 1 । असंख्यात गुणवृद्धि, असंख्यात गुणहानि और अवक्तव्यस्थितिके उदीरक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । इसीप्रकार अनाहारक मार्गरणा तक जानना चाहिए। ६५१३. कालानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है --- ओध और आदेश । श्रोसे असंख्यास भागवृद्धि, असंख्यात भागहानि और अवस्थितस्थितिके उदीरक जीवोंका काल सर्वदा है। दो वृद्धि और दो हानिरूप स्थितियोंक उदीरक जीवोंका जयन्य काल एक समय हैं और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यात भागप्रमाण है। असंख्यात गुणवृद्धि, असंख्यात गुणहानि और अव्यस्थितिके उदीरक जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है । मनुष्यत्रिक में असंख्यात गुणवृद्धि, असंख्यात गुणहानि और ratoस्थितिके उदीरक जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है। शेष पद और मार्गरणाओंका भंग स्थितिविभक्तिके समान है। इसीप्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए । $ ५१४. अन्तरानुगम की अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है- आंध और आदेश | ओषसे स्थितिविभक्तिके समान भंग है । इतनी विशेपता है कि असंख्यात गुणवृद्धि और भवक्तव्यस्थिति के उदीरक जीवोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल वर्षपृथक्त्वप्रमाण है | मनुष्यत्रिमें स्थितिविभक्तिके समान भंग है । इतनी विशेषता है कि असंख्यात गुणवृद्धि और अवक्तव्यस्थितिके उदीरक जीवोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल वर्षपृथक्त्वप्रमाण है। शेष गतिमार्गणाओं में स्थितिविभक्तिके समान भंग है । इसीप्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए । १५१५. भावानुगमकी अपेक्षा सर्वत्र औदयिक भाव है । $ ५१६. अल्पबहुत्वानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-प्रोध और आदेश । --
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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