SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 242
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गा० ६२ ] उत्तरपयविउदीरणा ठायाणं वडिला २२६ " गुणवडि- हाणि श्रवत्त० असंखे भागो । मयुपञ्ज० -मपुसिणी० असंखे० मागहा ० संखे भागा | सेमपदा संखे० भागो । एवं जात्र० । ६५१०. परिमाणाशु० दुविहो० शि० श्रघेण आदेसेण य । श्रघेण असंखे भागवड्डि-हाणि अवडि० केति० ? अनंता । दोवडि-हारिण० असंखेजा । असंखे० गुणवड्डि- हाणि अवत० संखेजा । सेसमम्गणासु वित्तिभंगो | मणसलिए असंखे० गुणवड्डि-हाणि अवत्त० संखेजा । एवं जात्र० । 2. वरि s जी ५११. खेलाणु० माविको णि॰आ ओषेण श्रसंखे०भागवहि-वाणि प्र०ि सव्चलोगे । संसपदा लोग असंखे० भागे । एवं तिरिक्खा० । सेमगदी सच्चपदा लोग असंखे० भागे । एवं जाव० | O य ५१२. पोसणा० दुविहो णि० – ओघेण आदसेण य । श्रघेण असंखे०भाग- वह्नि हारिणश्रवट्टि० सव्वलोगो । दोषड्डि-हाणि० लोग असंखे० भागो अट्ठचो० देखणा | सेसपदा लोग असंखे० भागो । सेसगइमग्गषासु विहत्तिभंगो । वरि स्थितिविभक्तिके समान भागाभाग करना चाहिए। इतनी विशेषता है कि मनुष्यामं श्रसंख्यात गुणवृद्धि, असंख्यात गुणदानि और अवक्तव्य स्थितिके उदारक जीव असंख्यात सागमा हैं। मनुष्य पर्याप्त और मनुष्यनियों में असंख्यात भागहानि स्थिति के उदीरक जीव संख्यात बहुभागप्रमाण हैं। शेष पदोंके उदीरक जोब संख्यातवें भागप्रमाण हैं । इसीप्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए । १०. परिमाणानुगम की अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-प्रोच और थादेश । श्रोष से श्रसंख्यात भागवृद्धि, असंख्यात भागदानि और अवस्थितस्थितिके उदीरक जीव कितने हैं ? अनन्त हैं ? दो वृद्धि और दो हानिरूप स्थितियोंके उदीरक जीव असंख्यात हैं। असंख्यात गुणवृद्धि, असंख्यात गुणहानि और अवक्तव्य स्थितिके उदारक जीव संख्यात हैं। शेष मार्गणाओं में स्थितिविभक्तिके समान भंग है । इतनी विशेषता है कि मनुष्यत्रिमें असंख्यात गुणवृद्धि, असंख्यात गुणदानि और अवक्तव्यस्थितिके उदीरक जीव संख्यात हैं । इसीप्रकार नाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए | ५११. क्षेत्रानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है— ओघ और आदेश | असंख्यात भागवृद्धि, असंख्यात भागहानि और अवस्थितस्थितिके उदीरक जीवोंका क्षेत्र सर्व लोक है। शेष पदों के उदीरक जीवोंका क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भागप्रमारण है। इसीप्रकार तिर्यचोंमें जानना चाहिए । शेष गतियों में सघ पदके उदीरक जीवीका क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है । इसीप्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए। 1 ५१२. स्पर्शनानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है - श्री और आदेश | भोले - असंख्यात भागवृद्धि, असंख्यात भागहानि और अवस्थितस्थितिके उदीरक जीवोने सर्व लोकका स्पर्शन किया है। दो वृद्धि और दो हानिरूप स्थित्तियोंके उदीरक जीवोंने लोकके असंख्यातव भाग और नालीके चौदह भागों में से कुछ कम आठ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। शेष पदोंके उदीरक जीवोंने लोकके असंख्यात भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। शेष गतिमार्गाश्रमं स्थितिविभक्तिकं समान मंग है। इतनी विशेषता है कि मनुष्यत्रिकमें
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy