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________________ २३१ गा० ६२] उत्तरपडिउदहारणाए ठाणाणं भुजगारपरूषणा अवत्त उदीर० । असंखे गुणवडिउदीर० संखेगुणा । असंखे० गुणहाणिउदी० मंखे०गुणा । संग्वे गुणहा० असंखेगुणा। संखे०भागहा० संखे०गुणा । संखे० गुणवडि. असंखे०गुणा । संखे भागवडि० संखे गुणा । असंखे भागवडि० अणंतगुणा । अवडि० असंखे गुणा । असंखे०भागहा० संखे०गुणा । सेसमग्गणासु वित्तिभंगो । णवरि मणुमतिए सबथो० अवत्त० । असंखे०गुणववि० संखे गुणा । असंखे०गुणहाणि० संखे गुणा । सेसपदासांदविहत्तिमंगोचार्य श्री सुविधासागर जी महाराज एवं बड्डी समत्ता। ३५१७. एस्थ द्वाणपत्रणे क्रीरमाणे द्विदिसंक्रमभंगो । ___ एवं मूलपयडिटिदिउदीरणा समत्ता । ६५१८. एत्तो उत्तरपयडिविदिउदीरणा । तत्थ इमाणि चउवीसमणिोगदाराणि अद्धाच्छेदो जाव अप्पाबहुए ति भुजगार-पदणिक्खेव-वडिउदीरणा च । श्रद्धाछेदो दुविहो-जह० उक० । उकस्से पयदं । दुविहो णि-ओघेण श्रादेसेण य। ओषेण मिच्छ० उक्कस्सिया टिदिउदीरणा सत्तरिसागरोवमकोडाकोडीनो दोहिं ओघसे प्रवक्तव्यस्थितिके उदीरक जीव सबसे स्तोक है। उनसे असंख्यात गुणवृद्धिस्थितिके ने उदीरक जीव संख्यातगुणे हैं। उनसे असंख्यात गुणहानिस्थितिके उदीरक जीव संख्यातगुणे हैं। उनसे संख्यात गुणहानिस्थितिके उदीरक जीव असंख्यातगुणे हैं। जनसे संख्यात भागहानिस्थितिके उदीरक जीव संख्यातगुणे हैं। उनसे संख्यात गुणद्धिस्थितिके उदीरक जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे संख्यात भागवृद्धिस्थितिके उदीरक जीव संख्यातगुणे हैं। पुनसे असंख्यात भागवृद्धिस्थितिके उदीरक जीव अनन्तगुणे हैं। उनसे अवस्थितस्थितिके उदीरक जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे असंख्यात भागहानिस्थितिके उदीरक जीव संख्यातगुरणे हैं। शेष मार्गणाओंमें स्थितिविभक्तिके समान भंग है। इतनी विशेषता है कि मनुष्यत्रिकमें प्रवक्तव्यस्थितिके उदीरक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे असंख्यात गुणवृद्धिस्थितिके उदीरक जीत्र संख्यातगुणे है। उनसे असंख्यात गुणहानिस्थितिके उदीरक जीव संख्यातगुणे हैं। शेष पदोंका भंग स्थितिविभक्तिके समान है । इसीप्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए। इसप्रकार वृद्धि समाप्त हुई। ६५१७. यहाँ पर स्थानप्ररूपणा करनेपर उसका भंग स्थितिसंक्रमके समान है। इसप्रकार मूलप्रकृतिस्थितिउदीरणा समाप्त हुई। ५८. आगे उत्तरप्रकृतिस्थिति उदीरणाका प्रकरण है। उसमें ये चौबीस अनुबोगद्वार ई-अद्धाच्छेदसे लेकर अल्पबहुत्व सक तथा भुजगार, पदनिक्षेप और वृद्धिउदीरणा । अक्षाच्छेद दो प्रकारका है-जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है-ओंघ और आदेश । ओघसे मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिउदीरणा दो श्रावलि फम सप्तर Xn.
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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