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________________ २२६ जयधक्लासहिदे फसायपाहुडे [वेगो १५०३. अंतराणु० दुविहो णि०-ओघेण आदेसेण य । श्रोषेण असंखेजभागवटि अबाहि० जह० एगस०, उक० तेवहिसागरोवममदं तिणि पलिदो. सादिरेयाणि । असंखे०भागहा. जह० एयस०, उक्क० अंतोमु. । दोववि-हाणि जह एगस० अंतोमु०, उक्क० अणंतकालमसंखेजा पोग्गलपरियट्टा । असंखे०गुणवडि-हाअवत्त० जह• अंतोमु०, उक्क. उत्रबुधोकास्त्रिी आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज ६५०४. आदेसेण ऐरइय० असंखे भागवडि-अवढि० जह० एयस०, दोबड्डीहाणि जह० अंतो०, उक्क० तेतीसं सागरो० दे० । असंखे०भागहा. श्रोधं । एवं सव्वरोर० । णवरि सगहिदी देसू० ।। ६५०५. तिरिक्खेसु असंखे०भागवड्डि-अवढि० जह• एयस०, उक० पलिदो० असंखे०भागी। असंखे भागहा. जह० एयस०, उक्क० अंतोमु ० । दोषड्डि-हाणिक जह. एगस०, अंतोमु० उक्क० अणंतकालमसंखे०। पंचिंदियतिरिक्वतिए असंखे०भागवष्टि-संखे०गुणवड्डि० अबढि० जह• एयस०, संखे भागवड्डि०-संखेगुणहाणिक + ५०३. अन्तरानुगमको अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-श्रोत्र और श्रादेश | ओघसे असंख्यात भागवृद्धि और अवस्थितपदका जघन्य अन्तर काल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल साधिक तीन पत्य अधिक १६३ सागर है। असंख्यात भागहानिका जघन्य अन्तर काल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है। दो वृद्धियों और नो हानियोंका जघन्य अन्तरकाल क्रमसे एक समय तथा अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तरकाल अनन्त काल - है जो असंख्यात पुद्गल परिवर्तनप्रमाण है। असंख्यात गुणवृद्धि, असंख्यात गुणहानि और प्रवक्तव्यका जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तरकाल उपाधं पुद्गल परिवर्तन प्रमाण है। विशेषार्थ-स्वामित्व और कालको ध्यानमें रखकर अन्तरकालका स्पष्टीकरण सुगम है, इसलिए अलगसे खुलासा नहीं किया। आगे भी यही समझना । दिशाका झान करने के लिए स्थितिविभक्ति भाग तीन पृ० १५० आदिके विशेषार्थ देखो। इतना अवश्य है कि यहाँ उदीरणाकी अपेक्षा यह अन्तरकाल घटिव करना चाहिए। ५०४. आदेशसे नारकियोंमें असंख्यात भागवृद्धि और अवस्थितका अघन्य अन्तर काल एक समय है, दो वृद्धियों और दो हानियोंका जघन्य अन्तर काल अन्तर्मुहूर्त है तथा सबका उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम तेतीस सागर है। असंख्यात भागहानिका भंग ओधके समान है। इसीप्रकार सब नारकियों में जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि कुछ कम अपनीअपनी स्थिति कहनी चाहिए। १५०५ तिर्यश्चोंमें असंख्यात भागवृद्धि और अवस्थितका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। असंख्यात भागहानिका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है। दो वृद्धिों और दो हानियोंका जघन्य अन्तरकाल क्रमसे एक समय और अन्तर्मुहूर्त है तथा उत्कृष्ट अन्तरकाल अनन्त काल है जो असंख्यात पुद्गल परिवर्तनप्रमागा है। पञ्चेन्द्रिय तिर्यचत्रिकमें असंख्यात भागवृद्धि, संख्यात गुणवृद्धि और अवस्थितपदका जघन्य अन्तरकाल एक समय है, संख्यात
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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