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________________ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [वेदगो आणदादि मन्चट्ठा ति मोह० उक्क डिदि० उदी० जहण्णुक० एयस० | अणुक० जह जहणहिदी समयूणा, उक० उक्कस्सहिदी । एवं जाव० । ४३३. जहण्णए पयदं । दुविहो ,णि..--ओषेण श्रादेसेण य । ओघेण मोह० जहद्विदिउदी. जह० उक० एयस० । अजह० तिषिण भंगा । जो सो सादिश्रो सपञ्जवसिदो जह० अंतोमु०, उक्क. उबड्डपोग्गलपरियहूँ । ४३४. श्रादेसेण गैरइय. मोह० जा०द्विदिउद्दी० जहण्णुक० एयम । अज० जह० श्रावलिया समयाहिया. उक० तेत्तीसं सागरोवमाणि । एवं पढमाए देवा भवण०-वाणातर० । वरि सद्विदी। लेकर सर्वार्थसिद्धि तक के देवाम मोहनीय की उत्कृष्ट स्थिति उदारणाका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अनुत्कृष्ट स्थितिबदीरणाका जघन्य काल एक समय कम जघन्य स्थिति प्रमाण और उत्कृष्ट काल उत्कृष्ट स्थितिप्रमाण है। इसीप्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाझिादर्शक :- आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज विशेषार्थ- पूर्वोक्त दोनों लमध्यपर्याप्त जीवोंमें अपने स्वामित्वके अनुसार मोहनीयकी उत्कृष्ट स्थिति उदीरगा। एक समय तक ही प्राप्त होती है, इसलिए इनमें इनका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय कहा है। तथा इस एक समयका क्षुल्लकभवके काल मेंसे कम कर. देने पर इनमें मोहनीयकी अनुत्कृष्ट स्थित उदीराका जघन्य काल एक समय कम शुल्लक भवप्रमाण प्राप्त होता है, इसलिए इनमें मोहनीयकी अनुस्कृष्ट स्थिति उदीरणाका जघन्य काल उक्त कालप्रमाण कहा है। तथा इनमें मोहनीयकी अनुत्कृष्ट स्थिति उदीरणाका उत्कृष्ट काल ..." अन्तर्मुहूर्त प्रमाण है यह स्पष्ट ही है। इसीप्रकार आनतादि देवों में स्वामित्वका विचार कर काल प्ररूपणा समझ लेनी चाहिए। विशेष वक्तव्य न होनेसे अलगसे स्पष्टीकरण नहीं ... किया है। ४३३. जघन्यका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है---प्रोध और आदेश । ओत्रसे मोहनीयकी जघन्य स्थिति उदारणाका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अजघन्। स्थितिउदारणाके तीन भंग हैं। उनमें जो वह सादिसपर्यवस्मित भंग है उसका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल उपाधं पुद्गल परिवर्तनप्रमाण है। विशेषार्थ—-अपने स्वामित्वके अनुसार जघन्य स्थितिउदीरण एक समय तक होती है, इसलिए इसका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय कहा है। किन्तु किसी जीवके अर्धपुद्गलपरावर्तके प्रारम्भमें और अन्समें यथायोग्य जघन्य स्थिति उदीरणा हो श्रीर मध्यमें अजघन्य स्थितिजदीरणा होती रहे तथा किसी जीवके अन्तर्मुहूर्त काल तक ही यह ही यह भी सम्भव है, इसलिए प्रोघसे अजघन्य स्थितिजदीरणाका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट काल उपाध पुद्गलपरावर्तप्रमाण कहा है। ६४३४. श्रादेशसे नारकियों में मोहनीयकी जघन्य स्थितिउदीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अजघन्य स्थितिउदीरणाका जघन्य काल एक समय अधिक एक श्रावलि श्रार उत्कृष्ट काल तेतीस सागर है । इसी प्रकार प्रथम पृथिवा नारकी, सामान्य देव, भत्रनवासी और व्यन्तर देवाम जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि अपनी-अपनी स्थिति कहनी चाहिए।
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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