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________________ १६४ जयधवला सहिदे कसायपाहुडे [ वेदगी ७ एव तत्थ य भवद्विदिमखुपालिय चरिभसमयणिम्पिडमाणयस्व । एवं जोदिसि० । सत्तमाए एवं चैव । णवरि तत्थ भवद्विदिमणुपालेऊण थोत्रावसेसे जीविदच्चए ि मिच्छत्तं गढ़ो जात्र सताव संतकम्मस्स हेड्डा बंधिऊण समविदियं वा बंधिऊण संतकम्मं बोलेण वा श्रावलियादीदस्स वस्स जह० हिदिउदीरणा । श्री. ४२९. तिरिक्वेसु मोह० जह० डिदिउदी कस्स ? अण्णद० चादरेइंद्रियस्स हृदसमुत्पत्तियस्स जाव पकं ताव संतमराज संतकम्मं बोलेदूण वा आवलियादीदस्स तस्स जह० ट्टिदिउदीरः । सव्वपंचिंदियतिरिक्ख मरणसश्रपञ्ज० मोह० जहण्णडिदिउदी० कस्स ? अरसद बादरेइंदिय पच्छा ० हृदसमुप्पत्ति श्रावलियउबवण्णो तस्स जह० विदिउदी० | सोहम्मादि जाब सच्च चि मोह० जह० डिदिउदीर० कस्स ? रणद० खड्यसम्माइडि० उसम से हिपच्छाय० दीहार आउहिदीए उववजिऊण चरिमसमयणिम्पिडमाणयस्स तस्स जह० हिदिउदी० । एवं जाव० । o 2 ६४३०. कालागमं दुविह जह० उक० | उकस्से पयदं । दुविहो णि०-ओघेण आदेसेण य । श्रोषेण मोह० उक० डिदि उदीर० जह० एयसमत्रो, उक्क० अनन्तानुबन्धचतुष्ककी विसंयोजना करके उसी अवस्थामें भवस्थितिका पालन कर जब अन्तिम समय में वहाँ से निकलनेवाला होता है, तब मोहनीयकी जघन्य स्थितिउदीरणाका स्वामी है। इसीप्रकार ज्योतिषी देवोंमें स्वामित्व है। सातवीं पृथिवी में इसीप्रकार है। इतनी विशेषता है कि वहाँ भवस्थितिका पालन कर जीवितव्य के स्तोक शेष रहनेपर मिथ्यात्वको प्राप्त हुआ और जब तक शक्य है तब तक सत्कर्मसे कम या समान स्थितिका बन्ध कर उत्कर्मको बिताते हुए जब एक आवलि काल चला जाता है तब वह जघन्य स्थितिउदीरणाका स्वामी है। १४२६ तिर्यच्चोंमें मोहनीयकी जघन्य स्थितिउदीरणाका स्वामी कौन है ? जो इत समुत्पत्ति अन्यतर बावर एकेन्द्रिय जीव जब तक शक्य है तब तक सत्कर्म से कम या समान स्थितिको बाँधकर सत्कर्मको बिताते हुए जब एक आवलि काल चला जाता है तब वह मोहनीयकी जघन्य स्थितिउदीरणा का स्वामी है। सब पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चों और मनुष्य अपर्याप्तकोंमें मोहनीयकी जवन्य स्थितिउदीरणा का स्वामी कौन है ? जिस इतसमुत्पत्तिक जीवको बादर एकेन्द्रियों से आकर यहाँ उत्पन्न हुए एक भावलि हुआ है वह अन्यतर जीव मोहनीयकी जघन्य स्थितिउदीरणाका स्वामी है। सौधर्म कल्पसे लेकर सर्वार्थसिद्धितक के देवोंमें मोहनीयकी जघन्य स्थितिउदीरणाका स्वामी कौन है ? अन्यतर जो क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीव उपशमश्रेणिसे आकर दीर्घ आयुस्थितिवाले देवोंमें उत्पन्न होकर जब वहाँसे निकलने के अन्तिम समय में स्थित होता है तब वह मोहनीय की जघन्य स्थितिउदीरणा का स्वामी है। इसप्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए | ६४३०. कालानुगम दो प्रकारका है— जघन्य और उत्कृष्ट | उत्कृष्टका प्रकरण है । निर्देश दो प्रकारका है - श्रोध और आदेश । श्रघसे मोहनीयकी उत्कृष्ट स्थितिउदीरणाका
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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