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________________ १६३ गा० ६२ ] उत्तरपयडिउदीरणाम ठाणा सेसालियोगहारपत्र अप० मोह० उकासिणी या पंचि०तिरिक्खजोणिश्रो वा उकस्सट्टिदि बंधिदूण अंतमुत्तट्ठि दिघादम काऊ अज० उबवण्णो तस्स पढमसमय उबवण्णल्लयस्स | आरणदादि नवगेवजाति मोह० उक्क० विदि० उदीर० कस्म १ अण्णद० दव्त्रलिंगियो तप्पा थोग्गुकस्सट्टिदिसंन० पढमसमयउष्णल्लयस्स | अणुदिसादि सट्टा ति मोह उक्क० डिदिउदी • कस्स १ अण्णद० जो संजदो तप्पा ओग्गक० द्विदिसं० पदमसमयववण्णो तस्स उक० डिदिउदीरणा | एवं जाव | ४२७ जह० पदं । दुविहो णिः - श्रघेण श्रादेसे० । श्रघेण मोह ० जह० हिदिउदी० कस्स ? अण्णद० उबसामगस्स वा खवगस्स वा समयाहियावलियउदीरेमास्स । एवं मणुमतिए । : ४२८. देसेण णेरड्य० मोह० जह० डिदि०उदी० कस्स ? अण्णद० सष्णिपच्छायद दुसमयाद्दियावलिउचवण्णल्लयस्स | एवं पढमाए देवा भवन०वावें । विदियादि जात्र ट्टि ति मोह ० जह० द्विदिवदी० कस्स ? अण्णद० दीहाए उडिदीए उपवजिऊण अंतोमुत्ते सम्मत्तं पडिवज्जिय अनंत णु० चउकं० विसंजो 0 नीकी उत्कृष्ट स्थितिउदीरणाका स्वामी कौन है ? जो मनुष्य, मनुष्पिनी या पञ्चेन्द्रिय तिर्यंच योनिवाला अन्यतर जीव उत्कृष्ट स्थिति बाँधकर स्थितिघात किये बिना अन्तर्मुहूर्त में अपर्याप्तकों में उत्पन्न हुआ वह जीव उत्पन्न होनेके प्रथम समय में मोहनीयकी उत्कृष्ट स्थितिउदीरणाका स्वामी है। आनत कल्पसे लेकर नौ मैवेयक तक्के देत्रों में मोहनीयकी उत्कृष्ट स्थितिउदीरणाका स्वामी कौन है ? तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट स्थिति सत्कर्मत्राला अन्यतर जो द्रव्यलिंगी मरकर उक्त देवामें उत्पन्न हुआ वह उत्पन्न होनेके प्रथम समय में मोहनीयकी उत्कृष्ट स्थितिउदीरणाका स्वामी है। अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तक के देवोंमें मोहनीयकी उत्कृष्ट स्थिति उदीरणाका स्वामी कौन है ? सत्प्रायोग्य उत्कृष्ट स्थिति सत्कर्मवाला जो अन्यतर संयत मरकर उक्त देवोंमें उत्पन्न हुआ, वह उत्पन्न होनेके प्रथम समय में मोहनीयकी उत्कृष्ट स्थितिउदीरणाका स्वामी | इसीप्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए । ६ ४२७. जघन्यक्का प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है— ओघ और आदेश । श्रघसे मोहनीयकी जघन्य स्थितिउदीरणाका स्वामी कौन है ! उपशामक या क्षपक जो अन्यतर जीच एक समय अधिक आवलिप्रमाण स्थितिके रहनेपर उड़ीरणा कर रहा है वह मोहनीयकी जघन्य स्थितिउदीरणाका स्वामी है। इसीप्रकार मनुष्यत्रिक में जानना चाहिए। ४२८, प्रदेश से मोहनीयकी जघन्य स्थितिउदीरणाका स्वामी कौन है ? श्रन्यतर जो असंज्ञी मरकर नरक उत्पन्न हुआ है और जिसे वहाँ उत्पन्न हुए दो समय अधिक एक बलि हो गया है वह मोहनीयकी जघन्य स्थितिउदीरणाका स्वामी है। इसीप्रकार प्रथम पृथिवोके नारकी, सामान्य देव, भवनवासी और व्यन्तर देवोंमें जानना चाहिए। दूसरीसे लेकर छठी पृथिवी तकके नारकियों में मोहनीयकी जघन्य स्थितिउदीरणाका स्वामी कौन है ? अन्यतर जो दीर्घ श्रायुस्थिति के साथ उत्पन्न होकर, अन्तर्मुहूर्त में सम्यक्त्वको प्राप्त होकर और २५
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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