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जयधवलासहिदे कसायपाहडे
[बंदगो १४२४, जह उदीर०-अजह द्विदि०-उदीरणाणु० दुविहो णि-पोषण आदेसे० । अोघेण सव्यजण्णियविदिमुदीरेशाणपस्स जह० विदिउदीरणा। तदो उपरिमजहहिदिउदीरणा । एवं जाव० ।
४२५. सादि० प्रणादि०-धुव०-अर्द्धवाणु दुविहो णि-प्रोघेण श्रादेसे०। अोघेण मोह. उक्क. अणुक्क • जह० किं सादि. ४ ? सादि-अधुवा । अजह हिदिउदीर० किं सादि० ४ ? सादि० अणादि० धुवा अदुवा वा । सेसगदीसु उक्क० अणुक० जह ० अजह० सादि-अधुवा । एवं जाय।
४२६. सामित्ताणुगमं दुविहं-जह० उक्क०। उक्कस्से पयदं । दुविहीं णि.-- ओघेण आदेसे० | ओषेण मोह० उक० द्विदिउदी० कस्स ? अण्णद० उक्कसहिदि मार्गदर्शक :- आचार्य श्री सुविक्षिसागर जी
दादरस, एवं दस गदीस हारावरि पंचिंतिरिकाप अपज०-मणुम६४२४, जघन्य स्थिति उनीणा और अजवन्य स्थिति उदारणानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकार का है---श्रीध और श्रादेश । श्रोबसे सबसे ज बन्य स्थिनिकी उदीरणा करनेवाले जीवके जघन्य स्थितिउदीरणा होती है। उससे ऊपर अजघन्य स्थिति उदारणा होती है। इसीप्रकार अनाहारक मार्गणा नक जानना चाहिए।
६४२५. सादि, अनादि, ध्रुव और अध्र वानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका हैअोव और आदेश । ओघसे मोहनीयको उत्कृष्ट, अनुत्कृष्ट और जघन्य स्थिति उदीरणा क्या सादि है, अनादि है, ध्र व है या अध्रुव है ? सादि और अध्रुव है। अजघन्य स्थिति उदारणा क्या सादि है, अनादि है, ध्रुव है या श्रध्रुवे है ? सादि, अनादि, ध्रुव और अध्रुव है। शेष गतियोंमें उत्कृष्ट, अनुत्कृष्ट, जघन्य और अजघन्य स्थिति उदारणा सादि और अध्र व है। इसीप्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए ।
विशेषार्थ-- उत्कृष्ट स्थिति उदीरणा पुनः पुनः प्राप्त हो सकती है, इसलिए उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिउदीरनामें अनादि और ध्र व ये दो विकल्प नहीं बन सकने । यही कारण है कि इन दोनों प्रकारकी उदीरणाओं को सादि और अध्रव कहा है। जघन्य स्थितिउदीरणा उपशामक या क्षपक होती है, इसलिए इसे भी सादि और अध्र व कहा है। किन्तु इसके पूर्व श्नजन्य स्थिति उदीरणा अनादि है, उपशामकके जघन्य स्थिति दीरणाके बाद सादि है, तथा भव्योंमें ध्रुव और अभव्योमें ध्रुव है, इसलिए इसे चारों प्रकारकी कहा है । यह ओधप्ररूपणा है। गति मार्गाके उत्तर भेद कादाचित्क हैं, इसलिए उनमें चारों प्रकारकी स्थिति उदारणा सादि
और अध्रुव कही है। शेष मार्गणाओं में इसीप्रकार जहाँ जिस प्रकार सम्भव हो घटित कर लेना चाहिए।
४२६. स्वामित्वानुगम दो प्रकारका है-जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्ठका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है--योघ और ध्यादेश। अघिसे मोहनीयकी उत्कृष्ट स्थितिउदीरणाका स्वामी कौन है ? उत्कृष्ट स्थिति पाँधनेके बाद जिसे एक प्रावलि काल गया है ऐसा अन्यतर जीव मोहनीयकी उत्कृष्ट स्थिति उदीरणाका स्वामो है। इसीप्रकार चारों गांतयों में जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि पञ्चेन्द्रिय तिर्यच अपर्याप्त और मनुष्य अपर्यातकोंमें मोह