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________________ गा० ६२ ] १०१ मार्गदर्शक जी महाराज --- १ ४२१. जहणए पदं । दुविहो णि ओघेण आदेसे० । श्रघेण मोह० जह० हिदिउदीरणा एया हिंदी समयाहियावलियकालडिदिया । एवं मणुसतिए । रइय० मोह० जह० द्विदिउदीरणा सागरोवमसहस्सस्स सत्तमत्तभागा पलिदो ० संखेभागेण ऊणिया । एवं पढमपुढवि० देवा भवण० वाणवैतर० । सेसमगणासु द्विदिविहनिमंगो । वरि उदीरणालावो काचो । श्रादेसेण 3 ९४२२. सन्चउदीरणा- गोसव्बउदीरणाणु० दुविहो णि० श्रघेण श्रादेसे० । ओघेण वा द्विदीओ उदीरेमाणस्स सव्वाट्ट दिउदीरणा । तदूर्ण गोसव्वट्टिदिउदीरणा | एवं जाव० । ३४२३. उ० डिदिउदी० श्रणुक० हिदिउदीरणाणु० दुविहो णि० – ओघेण आदेसेण य | ओघेण सम्बुकस्मियं द्विदिमुदीरेमाणस्स उक द्विदिउदी० तदूणमणुक०| | डिदिउदीरणा | एवं जाय० । ९४२१. जघन्यका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है-प्रोध और आदेश । श्रधसे मोहनीयकी जघन्य स्थितिउदीरणा एक समय अधिक एक अवलि काल स्थितिवाली एक स्थिति है । इसीप्रकार मनुष्यविक्रमं जानना चाहिए। प्रदेश से नारकियों में मोहनीयकी जघन्य स्थितिउदीरणा एक हजार सागर के सात भागों से पल्यका संख्यातवाँ भाग कम सात भाग. प्रमाण है । इसी प्रकार प्रथम प्रथित्री, सामान्य देव, भवनवासी और व्यन्तर देवोंमें जानना चाहिए। शेष मार्गणाओं में स्थितिविभक्तिकं समान भंग है। इतनी विशेषता है कि स्थितिसके स्वानमें स्थितिउदीरणा कहनी चाहिए । विशेषार्थ – यहाँ पर सामान्यसे मोहनीयकी जघन्य स्थिति उदीरणा एक समय अधिक एक पल काल स्थितिवाली एक स्थिति कहीं हैं सो क्षपक सूक्ष्मसपराधिक के संज्वलन सूक्ष्म लोभकी जब अधस्तन स्थिति एक समय अधिक एक अवलिप्रमाण शेष रहती है तब यह जघन्य स्थितिउदीरणा प्राप्त होती है। मनुष्यत्रिमें प्रोघ प्ररूपणा अभिकल बन जानेसे उसे घोष के समान जानने की सूचना की है। सामान्य नारकी, प्रथम पृथिवी के नारकी, सामान्य देव, भवनवासी और व्यन्तरोंमें असंही पञ्चेन्द्रिय पर्याप्त जीव मरकर उत्पन्न हो सकते हैं, इसलिए इन मार्गणाओं में असंही पञ्चेन्द्रिय पर्याप्त जीवांके मोहनीय सम्बन्धी जघन्य स्थिति को ध्यान में रखकर जघन्य स्थितिउदीरणाका प्रमाण कहा है। प्रमाणका उल्लेख मूल में किया ही है। शेष कथन स्पष्ट है । ९४२२. सर्व उदीरणा और नांसर्व उदीरणानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है— श्रोष और आदेश | ओघसे सब स्थितियोंकी उदीरणा करनेवालेके सर्वस्थितिउदीरणा होती है और उससे न्यून स्थितियोंकी उदीरणा करनेवालेके नोसर्वस्थितिउदीरणा होती है । इसीप्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए | १४०३. उत्कृष्ट स्थितिउदीरणा और अनुत्कृष्ट स्थितिउदीरणानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है - प्रोध और आदेश । श्रोषसे सर्वोत्कृष्ट स्थितिकी उदीरणा करनेवालेके उत्कृष्ट स्थितिउदीरणा होती है और उससे न्यून स्थितिकी उदीरणा करनेवाले श्रष्टस्थितिहोती है । इसीप्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए ।
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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