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________________ १८६ ..... ..... . .... . .. . .. . .. .... जयधवलामहिदे कसायपाहुडे [वेदगो विसे० । अवटि. असंख० गुणा । एवं सच्चरणेरड्य-पंचिंदियतिरिक्खतिय३-भवणादि जाव गवगेवजा ति । तिरिक्खेसु सव्वत्थो० संख० भागहाणि । संखे०भागड्डि. विसेमा | अवहिपवे अपंतगुणा । पंचितिरिक्खअपञ्ज-मणुपअपज० सम्वत्थो० संख०भागहाणिप० । अबढि०प० असंखे०गुणा । ४११. मणुसेसु सम्वत्थो० अवत्त०प० । संखे गुणवडिपवे० संखेगुणा । संखे०गुणहाणिपत्रे विसेसा०। संखेमास्यविपके०संस्खेगुगासविसम्मानहाविपक्षेत्र असंखे०गुणा । अहि०पवे. असंखे गुणा । एवं मणुसपज मणु सिणी० । णवरि संखजगुणं कादच्वं । ४१२. देवेसु सव्वत्थो० संखे० गुणवद्धिपवे० । संखे भागहाणिपवे. असंखे०गुणा । संखे०भागवडिपवे. विसेसा । अववि०प० असंखे गुणा । अणुदिसादि सबट्टा ति सबथोवा संखे० गुणवडियवे० । संखे० भागवडियवे, बिसेमा० । संखेनभामहा०प० असंखे० गुणा । अववि०पवे. असंखे गुणा । शररि सब्य संखेजगुरणं कायव्यं । एव जात्र० 1 एवमेदेसु भुजगारादिअणियोगद्दारेसु बिहासिदेव नदो 'कदि च पविस्संति कम्स प्रावलियं' ति पदं ममतं । उनसे संख्यात भागवृद्धि पदके प्रवेशक जीव विशेष अधिक हैं। उनसे अवस्थित पदके प्रवेशको जीव असंख्यातगुणे हैं। इसीप्रकार सब नारकी, पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चत्रिक तथा भवनवासियोंसे . लेकर नौ प्रैधेयक तकके देवोंमें जानना चाहिए । तिर्यश्चों में संख्यास भागहानि पदके प्रवेशक .." जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे संख्यात भागवृद्धि पदके प्रवेशफ जीव विशेष अधिक हैं। उनसे अवस्थित पदके प्रवेशक जीव अनन्तगुणे हैं। पंचेन्द्रिय तियन अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्तकों में संख्यात भागहानि पदके प्रवेशक जीत्र सयसे स्तोक हैं। उनसे अवस्थित पदके प्रवेशक जीव असंख्यातगुरणे हैं। ४११. मनुष्यों में प्रवक्तच्य पदके प्रवेशक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे संख्यात गुणवृद्धि पदके प्रवेशक जीव संख्यानगुणे हैं। उनसे संख्यात गुणहानि पदके प्रवेशक जीव विशेष अधिक हैं। उनसे संख्यात भागवृद्धि पदके प्रवेशक जीव संख्यातगुणे हैं। उनसे संख्यात भागहानि पदके प्रवेशक जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे अवस्थित पदके प्रवेशक जीव असंख्यातगुणे हैं । इसीप्रकार मनुष्य पर्याप्त और मनुष्यनियों में जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि संख्यातगुणा करना चाहिए । ६४१२. देवोंमें संख्यात गुणवृद्धि पदके प्रवेशक जीव सबसे स्तांक हैं। उनसे संख्यान भागहानि पदके प्रवेशक जीव असंख्यातगुरणे हैं। उनसे संखपात भागवृद्धि पदके प्रवेशक जीव विशेप अधिक हैं। उनसे अवस्थित पदके प्रवेशक जीव असंख्यानगुणे हैं। अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि सकके देवोंमें संख्यात गुणवृद्धि पदके प्रवेशक जीव सबसे स्तोक है। उनसे संख्यात भागवृद्धि पदके प्रवेशक जीव विशेष अधिक हैं। उनसे संख्यान भागहानि पदके प्रवेशक जीय असंख्यातगुणे हैं। उनसे अवस्थित पदके प्रवेशक जीव असंख्यातगुणे है । इतनी विशेषता है कि सर्वार्थसिद्धिमें संख्यातगुणा करना चाहिए । इस प्रकार अनाहारक मार्गरणा नक जानना चाहिए । इस प्रकार इन मुजगार आदि अनुयोगद्वारोंका व्याख्यान करने पर कादि व पविस्संति फरस भावलिय' इस पदका व्याख्यान समान हुआ।
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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