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________________ गा० ६२] उत्तरपयडिजदोरणाप ठाणाणं सेसाणियोगमारपरूषणा 8 'खेत्त - भव - काल - पोग्गल-डिविधिवागोव्यस्त्रयो दु' त्ति एक्स्स विहासा। ४१३. एतो एदस्स गाहापच्छिमद्धस्स पत्ताव सरा परूवणा कायब्वा त्ति पइण्णायकमेदं । संपहि पदस्स गाहापद्धस्म समुदायस्थे प्रणयगये तब्धिसया विहासा पयदि ति तप्परूवणमुत्तरसुत्तमाह 8 कम्मोदयों खेत-भव-काल-पाग्गल विदिविवागोदययखो भवदि । ६४१४, कम्मेण उदयो कम्मोदयो । अपकपाचणाए विणा जहाकालजणिदो कम्माणं डिदिक्खरण जो विवागो सो कम्मोदयो ति भण्णदे । सो चुण खेत्त-भवकाल-पोग्गलद्विदिविवागोदयखयो ति एदस्स गाहापच्छद्धस्स समुदायत्थो भवदि । कुदो ? खेत-भव-काल-पोग्गले अस्सिऊण जो द्विदिक्खयो उदिण्णफलकम्मक्खंध. परिसडणलक्षणो सोदयो ति सुत्तत्थावलंबणादो। तदो कम्मोदओ 'दु' सद्देण सूचिदासेमविसेसपरूवणो पार्मिक माहापछि मावि सिवाणिलीणी स्वाणि विहासियव्यो त्ति एमो एदस्स चुण्णिसुत्तस्स भावत्यो । सो च कम्मोदयो पयडि-हिदि-अणुभाग-पदेसविसयत्तेग्ण चउबिहो । तत्थेह ताव पयडिउदएण पयद, पयडिउदीरणाएंतरमेदस्स परूवणाजोगत्तादो। जइ एवं, कम्मोदयस्स अत्यविहासा किमट्ठमेत्थ सुत्तयारेण " -............ ~~ ~..................------............ * 'क्षेत्र, भव, काल और पुद्गलको निमित्त कर स्थितिविपाकसे उदयक्षय होता है। इसका विशेष व्याख्यान करना चाहिए। ६४१३. श्रागे इस गाथाके उत्तरार्धका अवसर प्राप्त कथन करना चाहिए इस प्रकार यह प्रतिज्ञावाक्य है। अब इस गाथाके उत्तरार्धका समुदायार्थ अवगत होने पर तद्विषयक विशेष व्याख्यान प्रवृत्त होता है, इसलिए उसका कथन करनेके लिए आपका सूत्र कहते हैं ____% काँका उदय क्षेत्र, भव, काल और पुद्गलको निमित्त कर स्थितिविपाकसे उदयक्षारूप होता है। ४१४. कर्मरूपसे उदयका नाम कर्मोदय है त्रिपक्वपाचन के बिना काँका स्थितिक्षयसे जा या कालजनित विपाक होता है वह कर्मादय कहा जाता है। परन्तु वह 'क्षेत्र, भव, काल भौर पुद्गलको निमित्त कर स्थितिविपाकसे उदयक्षयरूप है। इस प्रकार गाथाके इस उत्तारर्धका समुदायार्थ है, क्योंकि क्षेत्र, भय, काल और पुद्गलको आश्रय कर उदीर्ण फल कर्म स्कन्धका परिशानन लक्षण जो स्थितिक्षय होता है, वह उदय है, इस प्रकार सूचक अर्थका अवलम्बन लिया है। इसलिए माथाके अन्तम आये हुए. 'तु' शब्दस सूचित प्रशंष विशपांका कथम करनेरूप जो कर्माद्य गाथाके इस उत्तरार्धमें लीन है उसका इस समय व्याख्यान करना चाहिए इसप्रकार यह इस चूर्णिसूत्रका भावार्थ है। वह कर्मोदय प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेशका विषय करनेवाला हानेसे चार प्रकारका है। उनमंसे यहाँ पर प्रकृति उदय प्रकृत है, क्योंकि प्रकृति उदीरणके बाद यह प्ररूपणा योग्य है । - शंका-यदि ऐसा है तो यहां पर सूत्रकारने कर्मोदयकी अर्थषिभाषा क्यों नहीं की ?
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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