SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 198
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गा० ६२ ] उत्तरपडि उसीरणार. ठाणागणं सेसाणियोगहारपरूषणा - एवं जाय। ४०७. अंतराण. दुविहो णि.---श्रोघेण आदेसे० | ओघेण संखेञ्जभागवडिल हाणि जह० एयस०, उक्क० सत्तगर्दिदियागि । अहिदाणि णस्थि अंतरं । संखे गुणवडिल-अवत्त० जह० एयस०, उक्क० बासपुधत्तं । संखे गुणहाणि. जह० एयस०, उक० छम्मासा । एवं मणुसतिए । णारि मणुमिणी० संखे०गुणहाणि. जह. एयसमो, उक्क • बासपुधत्तं । सधणेरइय-सव्यतिरिक्ख०-मणुसअपज० भवणादि जाव गवगेवजा ति भुज भंगो । देवगइदेवा अणुदिसादि मन्बट्ठा ति भुज.. भंगो। णवरि संखे० गुणयष्टि जहएयस०, उक्क० वासपुधत्तं । णवरि सबढे पलिदो० संख भागो । एवं जाव० । ४०८. मावणुगमेण सन्चस्थ ओदइयो भावो | १४०९, अध्याबहुगाणु० दुविहो णि०--प्रोषेण आदेसे० । ओघेण सम्वत्थो० अबत्त०प० । संख०गुणवडिपवे. अखे० गुणा । संखे०गुणहाणिपवे. विवेसा० । संखे०भागहाणि० असंखे०गुणा । संखे०भागवटि त्रिसेसा० । अहि. अणंतगुणा । ४१०. आदेसेण णेरड्य० सबथो संखे भागहा. । संखे०भागवढि० मार्गदर्शक :- आचार्य श्री सुविधासागर जी महाराज........ ..... . समय है । इसी प्रकार अनारक मागेरणा तक जानना चाहिए। ४०७. अन्तरानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-बोध और आदेश | श्रोधसे संख्यात भागवृद्धि और संख्यात भागहानिका जघन्य अन्तर काल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर मात दिन-रात है। अवस्थित पदका अन्तरकाल नहीं है। संख्यात गुणवृद्धि और अवक्तव्य पदका जघन्य अन्तर एक समय है, और उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथस्त्वप्रमाण है । संख्यात गुणहानिपदका जघन्य अन्तर एक समय है अर उत्कृष्ट अन्तर छह महीना है। इसीप्रकार मनुष्यन्त्रिकमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि मनुषियनियों में संख्यात गुन्हानिका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्वप्रमागा है । सब नारकी, सब निर्यञ्च मनुष्य अपर्याप्त और भवनवासियांसे लेकर नौ ग्रेवेयकतकके देवोंमें भुजगारके समान भंग है। देवगतिमें सामान्य देव तथा अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंमें भुजगारके समान भंग है। इननी विशेषता है कि संख्यात गुणवृद्धिका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्वप्रमाण है। इतनी विशेषता और है कि सर्वार्थसिद्धिमै पल्यक संख्यातवें भागप्रमाण है । इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जागना चाहिए । pr. भावानुगमको अपेक्षा सर्वत्र औदायिक भाव है। ____ ०६. अल्पबहुत्वानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-प्रोध और आदेश । ओघसे अवक्तव्य पदके प्रवेशक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे संख्यात गुणवृद्धि पदके प्रवेशक जीव संख्यातगुणे हैं। उनसे संख्यात गुगाहानि पदके प्रवेशक जीव विशेष अधिक हैं। उनसे संख्यात भागहानि पदके प्रवेशक जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे संख्यात भागवृद्धि पदके प्रधेश क जीव विशेष अधिक हैं। उनसे अवस्थित पदके प्रवेशक जीव अनन्तगुणे हैं। ४१०. आदेशसे नारकियोंमें संख्यात भागहानि पदके प्रवेशक जीच सबसे थोड़े हैं।
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy