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________________ जयधवला सहिदे कसायपाहुडे [ बेगो ७ 2 ९४०५. पोमणाणु दुविहो णि० - प्रो० आदेसे० । श्रयेण संखे० भागवडि० लोग० असंखे० भागो - बारह चोहस० देसूणा । संखेज्जभागहाणि० लोग० असंखे० भागो अट्ठचोस० देखणा सच्चलोगो वा । श्रवद्वि० सव्वलोगो । सेसपदा लोग० असंखे० भागो । सव्वणिरय ० सव्वतिरिक्ख० मणुस श्रयञ्ज० भवणादि जाव वगेवजाति भुज०मंगो मणुसविए भुज०भंगो। णवरि संखे० गुणवड्डि- हाणि० लोग असंखे० भागो | देवादिदेवा अणुद्दिसादि सबट्टा ति भुज०भंगो । नवरि संखे० गुणवडि० लोग० असंखे० भागो । एवं जान० । ० ४०६. काला० दुविहो ०ि -- ओघेण आहेसे० । श्रघे० संखे० भागवडिहाणि० जह० एयस०, उक्क० श्रावलि० असंखे ० भागो । अडि० सव्वद्धा । सेसपद० जह० एयस०, उक्क० संखेजा समया । सव्वरिय० सव्यतिरिक्ख० मणुसच्यपज ० भवणादि जाव णववा ति भुज०भंगी । मणुसतिए भुज०भंगो। णवरि संखे०गुणचड्डि-हि ० जह० एस० उक० संखेजा समया । देवगदिदेवा अणुदिसादि सव्वा त्ति भुज०भंगो । वरि संखे० गुणवडि० जह० एन०, उक० संखेजा समया । १८४ ४०५. स्पर्शनानुगागर जी महाराज [ श्रघ और आदेश । श्रोघसे संख्यात भागवृद्धि, पदवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण तथा नालीके चौदह भागों में से कुछ कम आठ और बारह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया हैं । संख्यात भागहानि पदवाले जीवोंने लोकके असंख्यात भागप्रमाण तथा मनाली के चौदह भागों से कुछ कम आठ भागप्रमाण और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । अवस्थित पवाले जीवोंने सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। शेष पदवाले जीवाने लोकके असंख्यात भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सब नारकी, सब तिर्यञ्च मनुष्य अपर्याप्त और भवनवासियोंसे लेकर नौ मैत्रेयक तक के देवों में भुजगारके समान भंग है। मनुष्यत्रिक में भुजगार के समान भंग है। इतनी विशेषता है कि संख्यातगुणवृद्धि और संख्यातगुणानि पदवाले जीवोंने लोकके का संख्यातयें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। देवगति में सामान्य देव और अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धितकके देवों में भुजगारके समान भंग है। इतनी विशेषता हैं कि संख्यात गुणवृद्धि पदवाले देवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । इसीप्रकार अनाहारक मार्गमा तक जानना चाहिए । $४०६. कालानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है— ओघ और आदेश । श्रोघसे संख्यात भागवृद्धि और संख्यात भागहानि पदका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल श्रावलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है । अवस्थित पदका काल सर्वदा है। शेष पदोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है । सब नारकी, सब तिर्थन, मनुष्य अपर्याप्त और भवनवासियोंसे लेकर नौ मैवेयक तकके देवोंमें सुजगारके समान भंग है । मनुष्यत्रिक में भुजगार के समान भंग है। इतनी विशेषता है कि संख्यात गुणवृद्धि और संख्यात गुणदान पदका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है। देवगति में सामान्य देव तथा अनुशिसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तक के देवामें भुजगार के समान भंग है। इतनी विशेषता है कि संख्यात गुणवृद्धि पत्रका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात -1
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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