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________________ जयभवलासहिदे कसायपाहुडे [ वेदगो ७ तिरिक्खअपज० - मणुसम पञ० जह० हाणी अवड्डा० दो वि सरिसाणि । एवं जाव० । ६ ३९४. डिपो ति तत्थ इमाणि तेरस अणियोगद्दाराणि - समुत्तिणा जाय पाचहुए ति । समुक्कित्तणा० दुविहो णि० - अघेख आदेसे० | ओघेण थ संखे० भागवड्डि- हाणि संखे० गुणवडि-हाणी वडि० अवत्त० पवेसगा एवं मणुसतिए । ६३९५. आदे० णेरइय० अस्थि संखे भागवडिहाणि अवडि० पवे० । एवं सम्वणिरय ०-तिरिक्त-पंचि०तिरिक्खतिय ३ भवणादि जाव णवगेवजा त्ति । पंचि०तिरि० अपज० - मणुस अपजः प्रत्थि संखे० भागहा० श्रवट्टि वढि हाणि संखे० गुणवद्धि अब । देवेसु अस्थि संखे० भाग पत्र सव्वा चि । एवं जाव० | •मार्गदर्शक ९ ३९६. समिता० दुविहो णि० -- श्रघेण आदेसे० । श्रघेण संखे० भागवडि- हाणि अवडि० कस्स १ अण्णद० सम्माइडि० मिच्याइडि० | संखे० गुणवहिहाणि० कस्स ? अण्णद० सम्माइडि० । श्रवत्त० भुजगारभंगो। एवं मणुसतिए । सब्बर इय- सच्चति रिक्ख- मणुस अपज्ज० - भवणादि जात्र णवमेवजा त्ति भुजगारभंगो । वरि संखेञ्जभागवडि-हाणि श्रवद्विदालावेस येदव्यं । देवशणमोधं । णवरि संखे० गुणअपर्याप्तकों में जघन्य हानि और अवस्थानके प्रवेशक दोनों ही समान हैं। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक ले जाना चाहिए । ३६४. वृद्धिप्रवेशका अधिकार है। उसमें ये तेरह अनुयोगद्वार हैं- समुत्कीर्तनासे लेकर अल्पबहुत्व तक । समुत्कीर्तना के अनुसार निर्देश दो प्रकारका है - श्रोध और आदेश | संख्यात भागवृद्धि, संख्यात भागहानि, संख्यात गुणवृद्धि, संख्यात गुणहानि, अवस्थित और अवक्तव्य पदके प्रवेशक है। इसी प्रकार मनुष्यत्रिक में जानना चाहिए । १८० ३६५. आदेश से नारकियों में संख्यात भागवृद्धि, संख्यात भागहानि और अवस्थित पदके प्रवेशक हैं। इसी प्रकार सब नारकी, सामान्य तियंव, पंचेन्द्रिय तिर्यचत्रिक और भवनवासियोंसे लेकर नौ बेशक तक्के देवोंमें जानना चाहिए। पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च पर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्तकों में संख्यात भागहानि और अवस्थित पदके प्रवेशक हैं। देवोंमें संख्यान भागवृद्धि, संख्यात भागहानि, संख्यात गुणवृद्धि और अवस्थित पदके प्रवेशक है। इसी प्रकार अनुविशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तक के देव में जानना चाहिए। इसीप्रकार अनाहारक मार्गणातक ले जाना चाहिए । ६. स्वामित्वानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है - आंध और आदेश । श्रघसे संख्यात भागवृद्धि, संख्शतभागहानि और अवस्थित पदका स्वामी कौन है ? अन्यतर सम्यदृष्टि और मिध्यादृष्टि स्वामी है। संख्यातगुणवृद्धि और संख्यात गुणहानिका स्वामी कौन हैं ? अन्यतर सम्यग्दृष्टि स्वामी है । अवक्तव्य पदका भन्न सुजगार के समान है। इसी प्रकार मनुष्यत्रिक में जानना चाहिए। सब नारकी, सब तिर्यक्च, मनुष्य अपर्याप्त और भवनवासियों लेकर भी मैवेयक तक देवोंमें भुजगार के समान भंग है। इतनी विशेषता है कि इनमें संख्यात भागवृद्धि, संख्यात भागहानि और अवस्थित पदके आलाप के साथ स्वामित्व ले जाना चाहिए । देव आपके समान भंग है। इतनी विशेषता है कि इसमें संख्यातगुगुहानि और श्रवव्य पद
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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