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________________ गा० ६२ ] उत्तरपयडिउदारणाए ठाणाणं सेसारिणयोगहारपरूवणा हाणि-अवत्त पस्थि । अणुद्दिसादि सबट्ठा ति सब्वपदाणि कस्स ? अण्णद. एवं जावः । ३९७. कालाणु० दुत्रिहो णि०-अोघेण आदेसे । ओघेण संखेजभागवडि० जह० एयस०, उक्क. चत्तारि समया। संखे०भागहाणि-संखेजगुणहाणि-अवत्त० जहष्णु० एयस० । अधबा संखे भागहाणि० उक्क० वे ममया । संखे गुणवढि० जह० एयसमो, उक्क० तिएिण समया । अबढि० भुज भंगो । ३९८. आदेसेण सचणेरड्य०-सव्यतिरिक्ख-मणुमअपज. भवणादि जाव रणवगेयजा त्ति, भुजगारभंगो । मणुसलिए संखे भागवटि. जह• एयस०, उक्क० चत्तारि समया। संखे भागहाणि-सखे गुणवाड-हाणि-अवत्त० जह० उक्क० एयस० । संखे० भागहा० उक्त वेममया वा । अहि. भुज भंगो । देवाणं णारयभंगो। वरि संखे०गुणपड्डि• जह• उक्क ० एयस० । 'अणुहि सादि सबट्ठा त्ति संखे भागवटि ० जह• एयस०, उक्क० बेममया । संखे भागहा० संखे० गुणवडि० जह ० उक० एयस०। नहीं हैं। अनुदिशस लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवांमें सब पदोंका स्वामी कौन है ? अन्यतर जीव स्वामी है। इसीप्रकार अनाहारक मार्गरणा तक ले जाना चाहिए। ३६७. कालानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश। प्रोसे . संख्यातभागवृद्धिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल चार समय है। संख्यात भागहानि, संख्यात गुणहानि और अवच पदका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । अथवा संख्यात भागहानिका उत्कृष्ट काल दो समय है। संख्यात गुणवृद्धिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काम तीन समय है । अवस्थित पदका मंग भुजगार के समान है। विशेषाथ-पहले भुजगारका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल चार समय यतला अाये हैं उसी प्रकार यहाँ संख्यान भागवृद्धिका जबन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल चार समय घटित कर लेना चाहिए | पहले अल्पतर और अवतव्य पदका जवन्य और उत्कृष्ट काल एक समय बनला आये है उसी प्रकार यहाँ संख्यातभागहानि, संख्यासमुशहानि और श्रवक्तव्यका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय घटित कर लेना चाहिए। वहाँ प्रकारान्तरसे अल्पतर पदका उत्कृष्ट काल दो समय बतला आये हैं वहीं यहाँ संख्यात भागहानिका उत्कृष्ट काल दा समय जानना चाहिए । शेष कथन सुगम है। ३९. श्रादेशसे सब नारकी, सब तिर्यब्च, मनुष्य अपर्याप्त और भग्नवामियोंसे लेकर नौ बेयक तकके देवा में भुजगारके समान भंग है। मनुष्यत्रिको संख्यातभागधृद्धिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल चार समय है। संख्यानभागहानि, संख्यातगुणवृद्धि, संख्यातगुणहानि और प्रवक्तव्य पदका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अथवा संख्यातभागहानिका उत्कृष्ट काल मो समय है। अवस्थित पदका भंग भुजगारके समान है। देवोंमें नारकियोंके समान भंग है। इतनी विशेषता है कि संख्यातगुणवृद्धिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अनुदिशसं लेकर मार्थमिद्धितकके देवाम संख्यान भागवृद्धिका अनन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल दो समय है। मंत्र्यान भागहानि और संख्यात -
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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