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________________ गा० ६२ ] उत्तरपयडिउदीरणाए ठाणा से साथियो गद्दारपणा १७९ वड्डी कस्स ? अण्णद० एक्कावीसं पवेसेमाणो सम्मत्तं पवेसेदि तस्स जह० चष्टी । जह० हाणी कस्स ? अण्ण० बाबीसं पवेसेमाखेण सम्मत्तं खविदे तस्य जह० हाणी | तस्से से काले जह० वाणं | एवं जा० | | ३९२. अप्पाहु दुविहं -- जह० उक० | उकस्से पयदं । दुविहो लि०श्रधेासेण या चायोगोपसुतो जक म्हारी । हाणी अवद्वाणं च दो वि सरिसाणि विसे० | आदेसे० शेरइय● उकस्सव हि- हाणि श्रद्वाणाणि तिणि वि सरिसारण | वा सव्वत्थो० उक्क० हाणी । उक्क० वढी अवद्वाणं च दो विसरिसाणि विसेस ० । एवं सव्वरइय० सव्यतिरिक्ख- देवा भवणादि जाब एवमेवाति । वरि पंचि०तिरिक्खापत्र० मणुसअप ० उक्क० हाणी अवद्वाणं च दो त्रि सरिसारिख । मणुसतिए सच्चत्थो उक्क० बढी । हाणी अड्डाणं च दो त्रि सरिसाणि संखेजगुणाणि । देवेसु सव्वत्थो० उक० हाणी | बड्डी अवद्वाणं च दो वि सरिसाणि संखे०गुणाणि । एवमहिसादि सब्बट्टा ति । एत्र जाव० । ३ ३९३. जह० पदं । दुविहो गिद्देसी श्रघेण आदेसे० | बड्डी हाणी अत्राणं तिष्णि वि सरिसाणि । एवं चदुगदीसु । ० 1 ओषेण जह० गवरि पंचि जघन्य वृद्धि नहीं है । अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तक के देवानं जघन्य वृद्धिका स्वामी कौन है ? अन्यतर जी इक्कांस प्रकृतियोंका प्रवेशक सम्यक्त्वका प्रवेशक होता है वह जघन्य वृद्धिका स्वामी है । जघन्य हानिका स्वामी कौन है ? अन्यतर जो बाईस प्रकृतियों का प्रवेशक सम्यक्त्व प्रकृतिका क्षय करता है वह जघन्य हानिका स्वामी है। वहीं अनन्तर समय में जघन्य अवस्थान का स्वामी है । इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक ले जाना चाहिए । ३ ३६२. अल्पबहुत्व दो प्रकारका है— जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है । निर्देश दो प्रकारका है - ओ और आदेश । घोघसे उत्कृष्ट वृद्धिके प्रवेशक सबसे स्तोक हैं । उत्कृष्ट हानि और अवस्थानके स्वामी दोनों ही परस्पर समान होकर विशेष अधिक हैं । देशसे नारकिया में उत्कृष्ट वृद्धि, हानि और अवस्थान के प्रवेशक तीनों ही समान हैं । अथवा उत्कृट हानिके प्रवेशक सबसे स्तोक हैं। उत्कृष्ट वृद्धि और अवस्थानके प्रवेशक दोनों ही परस्पर समान होकर विशेष अधिक है। इसी प्रकार सब नारकी, सब वियंच, सामान्य देव और नवासियोंसे लेकर नौ मैवेयक तक्के देवों में जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि पंचेन्द्रिय तिथंच अपर्याप्त और मनुष्य अपर्यातकों में उत्कृष्ट हानि और अवस्थानके प्रवेशक दोनों ही समान हैं। मनुष्यत्रिमें उत्कृष्ट वृद्धिके प्रवेशक सनसे स्तोक हैं। उनसे उत्कृष्ट हानि और स्थानके प्रवेश दोनों हो परस्पर समान होकर संख्यातगुणे हैं। देवामें उत्कृष्ट हानिके प्रवेशक सबसे लोक हैं । उत्कृष्ट वृद्धि और अवस्थानके प्रवेशक दोनों हो परस्पर समान होकर संख्यातगुणे है । इसी प्रकार अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धिके देवों तक जानना चाहिए। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक ले जाना चाहिए । ६ ३६३. जयन्त्रका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है- मांध और आदेश | ओघ जवन्य वृद्धि, हानि और अवस्थानके तीनों ही प्रवेशक परस्पर समान हैं। इसी प्रकार चारों गतियों जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि पंचेन्द्रिय निर्यच अपर्याप्त और मनुष्य
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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