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________________ विधिसागर जी महाराज १७८ . जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ वेदगो ७ अथवा आदेसे० ऐरइय० उक्क० वड्डी कस्स ? अण्णद. जो वावीमं पवेसेमाणो उबसमसम्मा० अठ्ठावीसं पवेसेदि, तस्स उक० बढी । तस्सेब से काले उक्क अवट्ठाणं । एवं जाव० णवगेवजा ति अपजत्तवजं । पंचितिरि०अपज-मणुसअपज० उक० द्वाणी कस्म ? अण्णद० जो अट्ठावीस पवेसेमाणो सत्तावीसं पवेसेदि तस्स उक० हाणी । तस्सेव से काले उक्क० अवठ्ठाणं । ३९०. मणुसतिए उक्क० वड्डी कस्स ? अण्णद० उपसमसेढीदो ओदरमाणो पारस पवेसिय पुणो सत्तणोकसायाणं पवेसगो जादो, तस्स उक्क० बडी । उक्क. हाणी अवहाणं च ओघं । देवेसु उक्क• बड्डी ओघ । तस्सेत्र से काले उक्क० अबद्वाणं । उक्क हाणी कस्स ! अण्णद० अट्ठावीसं पवेसेमाणो चउवीसपये जादो तस्स उक्क. हाणो । एवमणुदिसादि जाव सव्वट्ठा ति । एवं जाव० ! ३९१. जह० पयदं । दुविहो णि०-ओषेण आहेसे० | भोघेण जह. बड्डी कस्स ? एलर्दक पणुवीस प.समर्माणों छब्बीसपवेसगो जादो तस्स जह• वढी । जह० हाणी कस्स ? अपणद० अट्ठावीसं पवेसेमाणो सत्तावीसफ्वेसगो जादो तस्स जह. हाणी। तस्सेव से काले जह• अवट्ठाणं | एवं चदुगदीसु । णवरि पंचि०तिरिक्खअपज०-मणुसअपज. जह० वड्डी गत्थि | अणुद्दिसादि सब्बड्वा ति जह. और भवनवासियों से लेकर नौ प्रवेयक तकके देवोंमें जानना चाहिए। अथवा प्रादेशसे नारकियों में उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी कौन है ? अन्यतर जो बाईस प्रकृतियों का प्रवेशक उपशमसम्यग्दष्टि जीव अहाईस प्रकृतियों का प्रवेशक होता है वह उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी है। वही अन्तर समयमें उत्कृष्ट अवस्थानका स्वामी है। इसी प्रकार अपर्याप्तकोंको छोड़कर नौ अवेयक तक जानना चाहिए । पंचेन्द्रिय तियेच अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्तकोंमें उत्कृष्ट हानिका स्वामी कौन है ? अन्यतर जो श्राहाईस प्रकृत्तियोंका प्रवेशक जीव सत्ताईस प्रकृतियोंका प्रवेशक होता है वह उत्कृष्ट हानिका स्वामी है । तथा वही अनन्तर समयमें उत्कृष्ट अवस्थानका स्वामी है। ३६०. मनुष्यत्रिकमें उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी कौन है ? अन्यतर उपशमश्रेणिसे उतरनेवाला जो बारह प्रकृतियों का प्रवेश कर पुनः सात नोकषायोंका प्रवेशक हो गया वह उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी है। उत्कृष्ट दानि और उत्कृष्ट अवस्थानका स्वामित्व पोषके समान है। देवों में उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी ओघके समान है। तथा वही अनन्तर समयमै उत्कृष्ट अवस्थानका स्वामी है । उत्कृष्ट हानिका स्वामी कौन है ? अन्यतर जो अट्ठाईस प्रकृतियों का प्रवेशक चोचीस प्रकृतियोंका प्रवेशक हो गया वह उत्कृष्ट हानिका स्वामी है। इसी प्रकार अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तक जानना चाहिए । इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक ले जाना चाहिए। ६३६१. जघन्यका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । मोघसे जघन्य वृद्धिका स्वामी कौन है ? अन्यसर जो पच्चीस प्रकृति योंका प्रवेशक छब्बीस प्रकृतियों का प्रवेशक हो गया वह जघन्य वृद्धिका स्वामी है। जघन्य हानिका स्वामी कीन है ? अन्यत्तर जो अट्ठाईस प्रकृतियोंका प्रवेशक सत्ताईस प्रकृतियों का प्रवेशक हो गया वह जघन्य हानिका स्वामी है। तथा वही अनन्तर समयमें जघन्य अवस्थानका स्शमी है। इसी प्रकार चारों पतियोंमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि पंचेन्द्रिय तियेच अपर्याप्त मौर मनुष्य अपर्यापकोंमें
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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