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गा०६२] उत्तरपयडिवीरणाए ठाणारणं से साणियोगदारपरूवणा
मार्गदर्शक :- आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज दे० सबलोगो वा । अबढि० सबलोगो । अवत्त० लोग० असंखे भागो ।
३७८. आदेसेणणेरइय० अप्प-अवडि० लोग असंखेज० छचोइस । भुजा लोग० असंखे०भागो पंचचोद्द० देसूणा । पढमाए खेत्तं। शिदियादि सत्तमा ति सबपदारणं सगपोसणं । णयरि सत्तमाए भुज० खेत्तभंगो। तिरिक्खेसु भुज० लोग० असंखे०भागो सत्तचोदस० देसूणा । अप्प० लोग. असंखे०भागो सबलोगो वा । अवटि. सबलोगो । एवं पंचिंदियतिरिक्वतिय० । णरि अववि० लोग० असंखे भागो सम्वलोगो वा । पंचितिरि०अपज-मणुसअपञ्ज० अप्प०अद्वि० लोग० असंखे भागो जीवोंने जोकके असंख्यातवें भागप्रमाण, त्रसमालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ भागप्रमाण
और सर्वलोक प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अवस्थितप्रवेशकाने सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। श्रवक्तव्यप्रवेशकोंने लोकफे असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया।
विशेषार्थ-जो गुणास्थान प्रतिपन्न जीव यथायोग्य अधस्तन मुणस्थानोंको प्राप्त होते हैं उनके भुजगारपद होता है ऐसे जीव सम्यग्दृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानीको भी प्राप्त होते हैं, वहीं देख कर यहाँ पर सोपसे भुजगार प्रवेशकोंका स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और त्रसमालीके चौदह भागोमसे कुछ कम पाठ और कुछ कम बारह भागप्रमाण कहा है। जो जीव मिथ्यात्वादि गुणस्थानोंसे ऊपरके गुणस्थानों में जाते हैं वे तो अल्पतरप्रवेशक होते ही हैं। साथ ही जो मिथ्याष्टि सम्यक्त्व और सम्यमिथ्यात्त्रकी लढेल ना करते हैं वे भी अल्पतरप्रवेशक होते हैं। यही मात्र इनमें सासादन जीव नहीं होते। यही देख कर यहाँ अल्पतरप्रवेशकोंका लोकके असंख्यातवें भाग, बसनालोके चौदह भागांचे कुछ कम पाठ भाग और सर्वलोक प्रमाणा क्षेत्र कहा है। इतना अवश्य है कि यहाँ पर सर्व लोकप्रमाण स्पर्शन उन जीवोंके कहना चाहिए जो २८ प्रकृतियों से सम्यक्त्वकी उद्वेलना होने पर २७ प्रकृतियाम और. २७ प्रकृतियों से सम्यग्मिथ्यात्यकी उद्बलना होने पर २६ प्रकृतियों में प्रवेश कर अल्पतरप्रवेशक होते हैं । अवस्थितप्रवेशकोंका स्पर्शन सर्व लोकप्रमाण तथा अवक्तव्यप्रवेशकोंका स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है वह स्पष्ट ही है। इसी प्रकार आगेके स्थानों में स्पर्शनका विचार कर लेना चाहिए । विशेष वक्तव्य न होनेसे हम पृथक पृथक खुलासा नहीं करेंगे।
६३७८. आदेशसे नारकियोंमें अल्पतर और अवस्थितप्रवेशकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम छह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। भुजगारप्रवेशकोंने लोकके असंख्यात भाग और सनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम पाँच भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। पहली पृथिवीका क्षेत्रके समान स्पर्शन है। दूसरीसे लेकर सातवीं पृथिवी तकके नाकियाम सम पदों की अपेक्षा अपना अपना स्पर्शन जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि समम पृथिवीमें भुजगारका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। तिर्यकचोंमें भुजगारप्रवेशकोंने लोकके असंख्यातयें भाग और बसनालीके चौदह भागाम स कुछ कम सात भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अल्पतरप्रवेशकाने लोफके असंख्यातवें भाग और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अवस्थितप्रवेशकोंने सर्व लोकप्रमाना क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इसीप्रकार पञ्चेन्द्रिय तिर्यक वत्रिकमें जानना चाहिए। किन्तु इतनी विशेषता है कि इनमें अवस्थित प्रवेशकोंने लोकक असंख्यातवें भाग और सर्व लोकागा दोत्रका स्पर्शन किया है। पन्चेन्द्रिय तिर्यकच अपर्याप्त और मनुष्य अपर्यातकाग अल्पतर और अवस्थित