SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 187
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५४ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [वेदगो सब्बलोगो वा । मणुसतिए पंचिंदियतिरिक्सभंगो। गरि अवत्त० खेत्तं । देवा. भवणादि जाव अच्चुदा ति सबपदाणं सगफोसणं । उवरि खेत्तं । एवं० जाव० । ६३७९. कालाणु० दुविहो णि-पोषेण श्रादेसे० । ओघेण भुज-अप्य. जह० एयस०, उक्क. श्रावलि० असंखे०भागो। अवहि० मधद्धा । अवत्त० जहा एयस०, उक्क० संखेजा समया। एवं सचणेरड्य-तिरिक्ख-पंचिंदियतिरिक्खतिय-देवा भवणादि जाव णयगेवजा ति | णवारि अवत्त० णस्थि । पंचितिरिक्खअपज्जा अप्प०-अवष्टि ओघं । ३८०. मणुसेसु भुज--प्रवत्त० जह० एयस०, उक्क० संखेजना समया । अप्प०अवढि० अोघं । एवमणुदिमादि जाव अवराजिदा ति । णवरि अवत्तः णस्थि । मणुसपज्ज-मणु सिणी-सबढ० अवडिभावकहा- अमेसर्वदास बहिहिास्यसना उकार प्रवेशकोंने लोकक प्रसंख्यातवें भाग और मर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्र्शन किया है। मनुष्यत्रिको पञ्चेन्द्रिय तिर्यक चोंके समान भंग है। किन्तु इतनी विशेषता है कि श्रवक्तव्यप्रवेशकोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। सामान्य देव और भवनवासियोंसे लेकर अच्युत कल्प तकके देवोंमें सब पदाकी अपेक्षा अपना अपना स्पर्शन जानना चाहिए। ऊपरके देवोंमें क्षेत्रके समान स्पर्शन है। इसीप्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए। ६ ३७६. कालानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-मोघ और श्रादेश । ओघसे भुजगार और अल्पतरप्रवंशकाका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल श्रावलिके असंख्यात भागप्रमाण है। अवस्थितप्रवेशकोंका काल सर्वदा है। प्रवक्तव्यप्रवेशकोंका . जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है। इसीप्रकार सब नारकी, सामान्य तिर्यकच, पञ्चेन्द्रिय तियंचत्रिक और भवनवासियोंसे लेकर नौ अवेयक तकके देवों में जानना चाहिए। किन्तु इतनी विशेषता है कि इनमें प्रवक्तव्यपद नहीं है। पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्च अपर्याप्तकोंमें अल्पतर और अवस्थितप्रवेशकोंका काल आपके समान है। विशेषार्थ- ओघसे भुजगारपद और अल्पतरपद एक समयतक हो और दूसरे समयमें न हो यह सम्भत्र है। तथा नाना जीव यदि निरन्तर इन पदोका करें तो उस कालका योग प्रावलिके असंख्यातवें भागप्रमाण ही होगा, इसलिए ओघसे भुजगार और अल्पर प्रवेशकोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल श्रावलिके असंख्यातवें भागप्रमाण कहा है। अवस्थितप्रवेशकोंक। काल सर्वदा है यह स्पष्ट ही है। प्रवक्तव्यप्रवेशक उपशमश्रेणिसे गिरनेवाले जीव होते हैं, इसलिए इनके प्रवेशकों का जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल संख्यात समय कहा है। यहाँ कही गई मार्गरमा प्रों में यह काल बन जाता है, इसलिए, उनमें श्रोधके समान जाननेकी सूचना की है। मात्र इनमें उपशमश्रेणीकी प्राप्ति सम्भव न होनेसे प्रवक्तव्यपदका निषेध किया है। ३८०. मनुष्यों में भुजगार और प्रवक्तव्यप्रवेशकोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है। अल्पतर श्रीर अवस्थितप्रवेशका का काल ओघके समान है। इसीप्रकार अनुदिशसे लेकर अपराजित विमान तकके देवोंमें जानना चाहिए । किन्तु इतनी विशेषता है कि इनमें प्रवक्तव्यपद नहीं है। मनुष्यपर्याप्त, मनुष्यनी और सर्वार्थसिद्धिके देवों में अवस्थितप्रवेशकोंका काल सर्वदा ।। शेफ पदोके प्रवेशकाका जघन्य काल एक समय
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy